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________________ व्यक्तिगत स्थिति पालन करनेका प्रश्न आता है, दूसरी ओर अपनी भावनाकी रक्षा का। वहा एक बडी टचर होती है। विनय नामकी चीज न हो त उसका हल नहीं निकल सकता । आचार्यश्रीको चपनमे मागनेका नाम बहुत बुरा लगता। एक जगह आप लिखते है :___"पहले हमारे घरमे गायें रहती थीं। किन्तु बादमे जव ऐसा नहीं था, तब माताजी पड़ोसियोके घरोंसे छाछ माग लानेको मुझसे कहती। मुझे बडी शर्म आती। आदेश पालन करना पडता पर उससे मुझे दुख होता।" । साधारणतया यह कोई खास बात नहीं है। पड़ोसियोमे ऐसा सम्बन्ध होता है। फिर भी अपने श्रम पर निर्भर रहनेका सिद्धान्त जिसे अच्छा लगता है. उसे वैसा कार्य अच्छा नहीं लगता। आचार्यश्रीकी स्वातंत्र्य-वृत्ति और कार्य-पटुताका इससे मेल नहीं बैठता। आप ८-६ वर्णकी उम्रमे चाहते थे कि "मैं परदेश (बंगाल) जाऊं, बड़े भाइयोंका सहयोगी वन ।" एक वार मोहनलालजी परदेशको विदा हो रहे थे। तब आपने माताजीके द्वारा उनके साथ जानेकी वहुत चेष्टा करवाई। पर वह सफल नहीं हो सकी। वे सागरमलजी (पाचवें भाई) को साथ ले जाना चाहते थे। आपने कहा-मैं उनसे भी अच्छा काम करूंगा। कारण कि आप सागरमलजीसे अपनेको अधिक होशियार समझते थे। प्रयास काफी हुआ किन्तु काम वना नहीं। उक्त घटना एक बहुत बड़ी सामाजिक क्रातिका गुप्त वीज है।
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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