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________________ २४ आचार्य श्री तुलसी भारतीय सामाजिक जीवनमे मागना और श्रमका अभाव, ये दो दोप घुसे हुए है। एक राष्ट्रमे ६०-७० लाख भिखमंगोकी फौज जो हो, वह उसका सिर नीचा करनेवाली है। अगर मांगने में शर्म अनुभव होती हो, अपने श्रम पर भरोसा हो तो कोई कारण नहीं कि एक व्यक्ति गृहस्थीमे रहकर भीख मागे । आचार्यश्रीने बचपनमे ही व्यापार-क्षेत्रमे जाना चाहा। किन्तु वैसा हो नहीं सका। या यों सही कि धर्म-क्षेत्रकी आवश्यकताओं ने आपको वहा जाने नहीं दिया। आप देशमे रहकर विरक्त वन जायेंगे, साधु बननेकी तैयारी कर लंगे, यह मोहनलालजीको पता नहीं था, अन्यथा वे आपको वहा नहीं छोड जाते। ___ अकस्मात् सिराजगंज (पूर्वी बंगाल) तार पहुंचा-लाडाजी (आपकी वहिन) की दीक्षा होनेकी सम्भावना है, जल्दी आओ। मोहनलालजी तार पढ तुरन्त लाडनू चले आये। स्टेशन पर पहुंचे। उन्होंने सुना - तुलसी दीक्षा लेगा। उन्होने कहा-मुझे यह खवर होती, मैं नहीं आता। खैर, घर पर आये। घरवालो को तथा आपको भी बहुत कुछ कहा सुना। जो वात टलनेकी नहीं, उसे कौन टाले। ___ इससे पूर्व आपके चौथे भाई श्री चम्पालालजी स्वामी दंक्षित हो चुके थे। आप तुरन्त दीक्षा पानेको तत्पर थे। मोहनलालजी आपको दीक्षाकी स्वीकृति देनेको तैयार नही हुए। तेरापन्थकी दीक्षा नियमावलीके अनुसार अभिभावकोंकी लिखित स्वीकृति के बिना दीक्षा नहीं हो सकती। यह एक समस्या
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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