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________________ प्राचार्य श्री तुलसी ने और चोरीका स्थान आत्म-निरीक्षणने ले लिया। सत्की संगति पा दोप भी गुण वन जाते है, ऐसा कहा जाता है। संभव है, यही हुआ हो । खैर, कुछ भी हो, आचार्यश्रीके वाल-जीवनमे भी प्रौढता निखर उठी थी, इसमे कोई सन्देह नहीं । बालजीवनोचित लीला-लहरियोंमे गंभीरता अपना स्थान किये हुए थी। सहज भावसे वालकोकी रुचि खेल-कूदमे अधिक होती है। पढ़नेमे जी नहीं लगता परन्तु आचार्यश्री इसके अपवाद रहे है। ____ आज विद्यालयोमे पाठ कण्ठस्थ करनेकी प्रणाली नहीं के बराबर है। कई शिक्षाविशारद इसे अनावश्यक और विद्यार्थी भार समझते है। कुछ भी समझ, इस प्रणालीने भारतीय ज्ञानराशिको अक्षुण्ण रखनेमे बडी मदद की है। लिखनेके साधन कम थे, अथवा प्रथा नहीं थी, उस जमानेमे जैनोंके विशाल आगम-साहित्य तथा वैदिकोंके वेद और उपनिपदोंकी सुरक्षा इमीसे हुई है। धार्मिक क्षेत्रमे आज भी इसका महत्त्व है । अगले पृष्ठोंमे आप पढ़ेंगे कि आचार्यश्री ने मुनि-जीवनमे इसका कितना विकास किया। एक राजस्थानी कहावत है-'ज्ञान कण्ठा और दाम अण्टा' । आजके विद्यार्थी पुस्तकोंके बिना एक पैर भी नहीं चल सकते, उसका इसकी उपेक्षासे कम सम्बन्ध नहीं है। चालक चतन्यके नवोदयकी भूमि होता है। उसमे शान्ति और क्रान्तिके मेलकी जो अपूर्व लौ जलती है, वह बुझाये नहीं चुभनी। बचपनको सीधा और सरल समझा जाता है पर वह अन्तर-द्वन्द्वसे मुक्त नहीं होता। एक ओर वड़ोंकी आज्ञाका
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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