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________________ ___ १८ आचार्य श्री तुलसी मैं कभी व्याख्यानमे नहीं जाता तो भी माताजीसे पूछता रहता-'आज फ्या व्याख्यान वंचा, क्या बात आई ?" ___ "मुझे बचपनसे ही वीडी, सिगरेट, चिलम, तम्बाकू, भाग गाजा, सुलफा, शराब आदि नशीली वस्तुओंका परित्याग था। मैने पान तक कभी नहीं खाया ।" बालकके लिए माता सञ्ची शिक्षिका होती है बच्चा माके प्यार दुलार और लालन-पालनका ही आभारी नहीं बनता, उसकी आदतोंका भी असर लेता है। गर्भकालसे ही माताका रहनसहन, खान-पान, चाल-चलन बच्चेको प्रभावित करने लग जाते है। इसीलिए शरीर-शास्त्रियोंने गर्भवती स्त्रीको सात्विक आहार, सात्त्विक विचार और सात्त्विक व्यवहार करनेकी बात बताई है। और इसीलिए ये वेचारे शिक्षा-शास्त्री चीख-पुकार करते है कि अशिक्षित माताएं बच्चोंके लिए अभिशाप है। उनके हाथोमे बच्चोंके उज्ज्वल भविष्यका निर्माण नहीं हो सकता। यह सही है। बदनाजीके आचार-विचारकी आचार्यश्रीके हृदय पर अमिट छाप पड़ी और उससे संस्कार उद्बुद्ध हुए, इसमे कोई शक नहीं। मन्यकालीन भारतीय माताओमे स्कूली पढ़ाईकी पद्धति नहीं रही। फिर भी वे परम्परागत रीति-रस्मोमे बडी निपुण होती थी। उनके मंस्कारी हदयोको हम अशिक्षित नहीं कह सकते। आचार्यत्रीस कई बार यह सुना कि वदनाजी बालकोंकी चिकित्सा अपने आप कर लेती। __ भारतीय साहित्यमे सत्पुत्र वह माना गया है, जो मा-वाप
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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