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________________ समय वि० स० ३७० के आसपासका है। सिद्धसेन दिवाकर स्कन्दिलाचार्यकी दूसरी पीढ़ीमे आते हैं, अतएव सिद्धसेनका समय विक्रमको पोथी और पांचवी शताब्दीमे आता है। जैन-परम्परा के आधारपर सिद्धसेन दिवाकरको विक्रमको चीथी-पांचवी शताब्दीम रखनमे किसी खास ऐतिहासिक हकीकतका वाघ आता है या नहीं, यह अब हमे देखना चाहिए। ____ पर हमने देखा कि निश्चित समयवाले ग्रन्योमे आनेवाले उल्लेखोके आधारपर सिद्धसेन दिवाकरको हम विक्रमको आ०वी शताब्दीके प्रारम्भके पूर्वमे रस सकते है। विक्रमको आ०वी शताब्दीमें 'सम्मति' शासनप्रभावक ग्रथ माना जाता है। उस कालको देखते हुए किसी भी अन्यको शासनप्रभावकका सम्मान प्राप्त होनेमे दो-तीन शताब्दी व्यतीत हो, तो उसमे कोई आश्चर्य नही है। इसलिए सिद्धसेन दिवाकरको विक्रमको ५वी शताब्दीमे मानें, तो पीछेके उल्लेख वरावर ठीक बैठते है। - શ્રી મસ્તૃવાલીને સિદ્ધસેન વિવાર અન્ય સન્મતિ પર ટી વી થી, ऐसा निर्देश आ० हरिभद्र ने किया है। प्रभावकचरित्रकार श्रीप्रभाचन्द्रसूरि १. (० हरिभद्र अपने अन्यमें तपसहकार शान्तरक्षितका उल्लेख करते है। शान्तरक्षितका समय विक्रमको प्रा०वी शताब्दी निर्णीत ही है। उन्होने 'स्थाहादपरीक्षा' ( कारिका १२६२ आदि ) और 'बहिरर्यपरीक्षा' (कारिका १९४० श्रादि ) में सुमति नामक दिगम्बराचार्य के मतको समालोचना की है और उसी सुनातिने इस सन्मतिपर विवृति लिखी है, ऐसे स्पष्ट उल्लेख मिलते है। इनमें एक उल्लेख पादिराजमरिक पानायचरित्रके प्रारम्भ और श्रवणबेलगोलाकी मल्लिषणप्रशस्तिम श्राता है, और दूसरा वृहटिप्पनिकाम सन्मतिको वृत्ति अन्यकर्तृक है, ऐसा है । इस सुमतिका दूसरा नाम सन्मति भी है । उससे सम्बन्ध रखनेवाले उल्लेख इस प्रकार है: नमः सन्मतये तस्मै भवकूपनिपातिनाम् । सन्मतिविवृता येन सुखवामप्रवेशिनी ॥ सुमतिदेवममुं स्तुत येन व. सुमतिसप्तकमाप्ततया कृतम् । परिहतापदतरवपदायिना सुमतिकोटिविति भवातिहत् ।। इसपरसे भी सिद्धसेनके निर्णीत किये हुए पांचवीं शताब्दीके समयको विशेष संवाद मिलता है। २. अ०ि हरिभद्रने इस विषयमें जो उल्लेख किये है, वे इस प्रकार है : उक्तं च वादिमुल्यन श्रीमल्लवादिना सन्मती। (अनेकान्तजयपताका पृ० ४७ ); सन्मतिवृत्तिभल्लवादिता (वृहट्टिप्पनिका ) । देखो जैन साहित्य /
SR No.010844
Book TitleSanmati Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi, Shantilal M Jain
PublisherGyanodaya Trust
Publication Year1963
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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