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________________ भूपणकी कालगणनामे दूसरा दोष यह भी है कि वह नवरत्नवाले २लोकको ऐतिहासिक प्रमाण मानकर कालिदास आदि नको व्यक्तियोंको समकालीन मानते है । परन्तु इस तरह इन नी व्यक्तियोको समकालीन मानने के लिए कोई प्रमाण नही है। इसके अतिरिक्त, क्षपणकसे सिद्धसेन दिवाकर ही उ६ि८ है, ऐसा मानना केवल कल्पना है। इसके लिए अधिक सुनिश्चित प्रमाणोकी आवश्यकता है। जैनोमे मुख्य आचार्योकी कालगणनाके लिए पट्टापलियाँ हैं । ये पट्टापलियां सर्वदा श्रद्धेय होता है ऐसा तो नहीं है, परन्तु उनमें अनेक काल-गणनाएँ है, ऐसा लाट आदि विद्वानोको भी मानना है। इस दृष्टिसे सिद्धसेन दिवाकरको परम्पराका विचार करें। वि० स० १३३४ के समयके प्रभाचन्द्रके 'प्रभावकचरित्र' मे सिद्धसेन दिवाकरको परम्परा विस्तारसे दी है। "विद्याधर आम्नायमै पादलिप्त कुलम स्कन्दिलाचार्य हुए। मुकुन्द नामक एक ब्राह्मण उनका शिष्य हुआ। यह मुकुन्द वादमे वृद्धवादीके नामसे प्रसिद्ध हुआ।" समी जैन-परम्पराएँ सिद्धसेन दिवाकरको वृद्धवादीका शिष्य मानती है। अत इस परम्पराकी अब हम जाँच करें। ___ स्कन्दिलाचार्य जना में प्रसिद्ध मायुरी आगमवाचनाके प्रणेता थे। यह वाचना जन-परम्परा अनुसार वार निर्माण संवत् ८४० मे हुई थी, अत स्कन्दिलाचार्यका तत्र कविक रूपमें उल्लिखित श्रुतसेन है, ऐसा डॉ० काउका मानना है, क्योकि इन दो श्लोकोमें अमरसिंह, शकु, घटकपर, कालिदास, वराहमिहिर और पर. रुचिको रत्नके रूपमें तथा कालतन कविके रूप में इस तरह दो बार गिनाया ही है । अत. १०वें श्लोक क्षपणक (जन साधु ) शब्दसे उद्दिष्ट व्यक्तिको ही ९वें श्लोक श्रुतसेनके नामसे कहा गया है । 'ज्योतिविदामरण' का टीकाकार भावरल सूचित करता है कि काव्य एव व्याकरण शास्त्र के नियमोके अनुसार 'सिद्धसेन के लिए ही श्रुतसेन रूप प्रयुक्त होता है। अत नवरत्नोमें उल्लिखित क्षपणक सिद्धसेन ही है। अब प्रश्न यह रहता है कि सिद्धसेन कालत कवि है या नहीं, अर्थात् उन्होंने ज्योतिषपर कुछ लिखा है या नही ? यद्यपि सिद्धसेन रचित कोई ज्योतिषविषयक अन्य इस समय तो उपलब्ध नहीं है, परतु वराहमिहिरने अपने बृहज्जातक' अन्यमें ज्योतिषपर लिखनेवालोमें सिद्धनका उल्लेख किया है । इस तरह अजनपरम्परा भी, जन-परम्पराको भांति, सिद्धसेनका संबंध विक्रमादित्यके साथ जोडती है। १. देखो आगे 'जीवन सामग्री' शीर्षकके नीचे 'प्रबन्धका सार।
SR No.010844
Book TitleSanmati Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi, Shantilal M Jain
PublisherGyanodaya Trust
Publication Year1963
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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