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________________ आभ्यंतर परिणाम अवलोकन - संस्मरणपोयो ३ ज्ञानकी सोमा कौनसी ? निरावरण ज्ञानकी स्थिति क्या ? अद्वैत एकांतसे घटित होता है ? ध्यान और अध्ययन | उ० अप० [ संस्मरण-पोथी ३, पृष्ठ ३५ ] 'ठाणांगसूत्र' में निम्नलिखित सूत्र क्या उपकार होनेके लिये लिखा है, इसका विचार करें । 'एगे समणे भगवं महावीरे इमीसेणं ऊसप्पिणीए चउवोसं तित्थयराणं चरिमे तित्थयरे सिद्धे बुद्धे मुत्ते परिनिव्वुडे सच्चदुःखप्पहोणे । स्वरूपबोध | योग निरोध । सर्वधर्म स्वाधीनता । . १३ ॐ मूर्तिता । सर्व प्रदेश संपूर्ण गुणात्मकता ! १४ आभ्यंतर भान अवधूत, विदेहीवत् जिनकल्पीवत् सर्व परभाव और विभावसे व्यावृत्त, निज स्वभावके भानसहित अवधूतवत्, विदेहीवत्, जिनकल्पीवत् विचरते हुए पुरुषरूप भगवानके स्वरूपका ध्यान करते हैं । 'सर्वाग संयम । लोकपर निष्कारण अनुग्रह । : [संस्मरण-पोथी ३, पृष्ठ ३९ ] प्रवृत्ति के कार्योंसे विरति । 7 संग और स्नेहपाशको तोड़ना (अतिशय विषम होते हुए भी तोड़ना, क्योंकि दूसरा कोई उपाय नहीं है ।) आशंका —— जो स्नेह रखता है, उसके प्रति ऐसी क्रूर दृष्टिसे वर्तन करना, क्या यह कृतघ्नता अथवा निर्दयता नहीं है ? समाधान ८४५ १५ [संस्मरण-पोथी ३, पृष्ठ ३७] १६ [संस्मरण-पोचो ३, पृष्ठ ४०] १. भावार्थ- - श्रमण भगवान महावीर एक है। वे इस अवसर्पिणी कालमें चौबीस तोयंकरोंमें अंतिम तीर्थकर हैं, वे सिद्ध हैं, बुद्ध हैं, मुफ्त हैं, परिनिर्वृत है, और उनके सब दुःख क्षीण हो गये हैं।.
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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