SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 981
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .८४४ ... श्रीमद राजबन्द :: ... [संस्मरण-पोथी. ३, पृष्ठ २४ ] मैं केवल ज्ञानस्वरूप हूँ। ऐसा सम्यक् प्रतीत होता है.। . .: : वैसा होनेके हेतु सुप्रतीत हैं। सर्व इंद्रियोंका संयम कर, सर्व परद्रव्यसे निजस्वरूपको व्यावृत्त कर, योगको अचलकर, उपयोगसे ___ उपयोगकी एकता करनेसे केवलज्ञान होता है । १ संस्मरण-पोथी ३, पृष्ठ २७ ] . .. आकाशवाणी तप करें, तप करें; शुद्ध चैतन्यका ध्यान करें; शुद्ध चैतन्यका ध्यान करें। ____ो संस्मरण पोथी ३.० २९१ मैं एक हूँ, असंग हूँ, सर्व परभावसे मुक्त हूँ। -- ... असंख्यात. प्रदेशात्मक निजावगाहना प्रमाण हूँ। अजन्म, अजर, अमर, शाश्वत हूँ। स्वपर्याय-परिणामी समयात्मक हूँ। शुद्ध चैतन्यस्वरूप मात्र निर्विकल्प द्रष्टा हूँ। ... : :: 1:/ : /स्वरूपसे चैतन्य उद चन FREE: पर्व परमार वेतन्यले अतीतिसे KPlace १२ . [ संस्मरण-पोयी ३, पृष्ठ ३१] शुद्ध चैतन्य। शुद्ध चैतन्य । शुद्ध चैतन्य । सद्भावकी प्रतीति-सम्यग्दर्शन। शुद्धात्मपद। .... - - - - -
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy