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________________ आभ्यंतर परिणाम अवलोकन-संस्मरण पोथी १ ८१३ ..श्री तीर्थकरने महामोहनीयके जो तोस स्थानक कहे हैं वे सच्चे हैं। .. अनंत ज्ञानीपुरुषोंने जिसका प्रायश्चित नहीं बताया है, जिसके त्यागका एकांत अभिप्राय दिया है, ऐसे कामसे जो व्याकुल नहीं हुआ, वही परमात्मा है। . . . .२० . . . . . [संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ ४९] कोई ब्रह्मरसना . भोगी, .. . . . . कोई ब्रह्मरसना भोगी; जाणे कोई विरला योगी, कोई ब्रह्मरसना भोगी। [संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ ५१] +२-२-३मा-१९५१ एक लक्ष,. . • मोहमयो,. काल, . मा० ००... . २१ द्रव्य, क्षेत्र, भाव, उदयभाव एक लक्ष मोहमयी द्रव्यक्षेत्रकाल- | उदासीन इच्छा . .. . .. . भाव- '. उदयभाव प्रारब्ध [संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ ५२] सामान्य चेतन सामान्य चैतन्य विशेष चेतन विशेष चैतन्य _ निर्विशेष चेतन (चैतन्य) स्वाभाविक अनेक आत्मा (जीव) निग्रंथ । सोपाधिक अनेक आत्मा (जीव) वेदान्त । [संस्मरण-पोधी १, पृष्ठ ५३] . २३ चक्षु अप्राप्यकारी। मन अप्राप्यकारी। चेतनका वाह्य अगमन (गमन न होना)। + स्पष्टीकरण-२-२-३ मा-१९५१ = [२ == द्वितीया, २ = कृष्णपक्ष, ३ = पोप, मा = मास, १९५१ = संवत् १९५१] = पौष वदी २, १९५१ द्रव्य =धन एक लक्ष = एक लाख क्षेत्र स्थान मोहमयी = बम्बई काल = समय मा० २०८-१ = एक वर्ष आठ महीने -यह विचारणा पौष वदो २, १९५१ के दिन लिखी गयी है कि द्रव्य-मर्यादा एक लक्ष रुपयेकी करनी. वम्बईमें एक वर्ष आठ महीने निवास करना, और ऐसी वृत्ति होनेपर भी उदय भावके अनुसार प्रवृत्ति करना। [श्री परमधवप्रभावक मण्डल, वम्बई द्वारा प्रकाशित श्रीमद्, राजचन्द्र (हिन्दी) पृ० ४३१ के फुटनोटसे उधत]
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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