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________________ व्याख्यानसार-१ ७५३ है उसे समझे बिना, अथवा उसका विचार किये बिना छोटी छोटी शंकाओं के लिये बैठे रहकर आगे न बढ़ना यह उचित नहीं है । जिनमार्ग वस्तुतः देखनेसे तो जीवके लिये कर्मक्षय करनेका उपाय है, परन्तु जीव अपने मतमें फँस गया है। : : ३०. जीव पहले गुणस्थानसे निकलकर ग्रंथिभेद तक अनंत बार आया और वहाँसे वापस लौट गया है । ३१. जीवको ऐसा भाव रहता है कि सम्यक्त्व अनायास आता होगा, परंतु वह तो प्रयास (पुरुषार्थ ) किये बिना प्राप्त नहीं होता । ३२. कर्मप्रकृति १५८ है । सम्यक्त्वके आये बिना उनमेंसे किसी भी प्रकृतिका समूल क्षय नहीं होता । अनादिसे जीव निर्जरा करता है, परन्तु मूलमेंसे एक भी प्रकृतिका क्षय नहीं होता । सम्यक्त्वमें ऐसा सामर्थ्य है कि वह मूलसे प्रकृतिका क्षय करता है । वह इस तरह कि :- अमुक प्रकृतिका क्षय होनेके बाद वह आता है; और जीव बलवान हो तो धीरे धीरे सब प्रकृतियोंका क्षय कर देता है । 4 ३३. सम्यक्त्व सभीको मालूम हो ऐसो बात भी नहीं है; और किसीको भी मालूम न हो ऐसा भी नहीं है । विचारवानको वह मालूम हो जाता है। 77 ३४. जीवकी समझमें आ जाये तो समझनेके बाद सम्यक्त्व बहुत सुगम है, परन्तु समझने के लिये जीवने आज तक सचमुच ध्यान ही नहीं दिया । जीवको सम्यक्त्व प्राप्त होनेका जब जव योग मिला है तब तब यथोचित ध्यान नहीं दिया, क्योंकि जीवको अनेक अंतराय हैं । कितने ही अंतराय तो प्रत्यक्ष हैं, फिर भी वे जाननेमें नहीं आते । यदि बतानेवाला मिल जाये तो भी अंतरायके योगसे ध्यानमें लेना नहीं बन पाता । कितने ही अंतराय तो अव्यक्तं हैं कि जो ध्यानमें आने ही मुश्किल हैं । ३५, सम्यक्त्वका स्वरूप केवल वाणीयोगसे कहा जा सकता है । यदि एकदम कहा जाये तो उससे जीवको उलटा भाव भासित होता है, तथा सम्यक्त्व पर उलटी अरुचि होने लगती है; परन्तु वही स्वरूप यदि अनुक्रमसे ज्यों ज्यों दशा बढ़ती जाये त्यों त्यों कहा अथवा समझाया जाये तो वह समझमें आ सकता है । ३६. इस कालमें मोक्ष है यों दूसरे मार्गोंमें भी कहा गया है । यद्यपि जैनमार्गमें इस कालमें अमुक क्षेत्रमें मोक्ष होना कहा नहीं जाता; फिर भी उसी क्षेत्रमें इस कालमें सम्यक्त्व हो सकता है, ऐसा कहा गया है । ३७. ज्ञान, दर्शन और चारित्र ये तीनों इस कालमें होते हैं । प्रयोजनभूत पदार्थोंका जानना 'ज्ञान', उसके कारण उनकी सुप्रतीति होना 'दर्शन' और उससे होनेवाली क्रिया 'चारित्र' है । यह चारित्र, इस कालमें जैनमार्गमें सम्यक्त्व होनेके बाद सातवें गुणस्थानक तक प्राप्त किया जा सकता है ऐसा माना गया है । • ३८. कोई सातवें तक पहुँच जाये तो भी बड़ी बात है । ३९. सातवें तक पहुँच जाये तो उसमें सम्यक्त्वका समावेश हो जाता है; और यदि वहाँ तक पहुँच जाये तो उसे विश्वास हो जाता है कि अगली दशा किस तरहकी है ? परन्तु सातवें तक पहुँचे बिना आगेको बात ध्यानमें नहीं आ सकती ।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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