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________________ ७३० श्रीमद राजचन्द्र प्रश्न-व्रत नियम करना या नही ? उत्तर-व्रतनियम करना है। उसके साथ झगडा, क्लेश, बाल-बच्चे और घरमे ममत्व नही करना। ऊँची दशामे जानेके लिये व्रत-नियम करना। सच्चे'झूठेकी परीक्षा करनेके बारेमे एक सच्चे भक्तका दृष्टात-एक राजा बहुत भक्तिवाला था; और इसलिये वह भक्तोकी सेवा बहुत करता, बहुतसे भक्तोका अन्न, वस्त्र आदिसे पोषण करनेसे बहुत भक्त इकट्ठे हो गये। प्रधानने सोचा कि राजा भोला है, भक्त ठग है; इसलिये इस बातकी राजाको परीक्षा कराई जाये । परन्तु अभी राजाको प्रेम बहुत है, इसलिये मानेगा नही, इसलिये किसी अवसरपर बात करेंगे, ऐसा विचार कर कुछ समय ठहर कर कोई अवसर मिलनेसे उसने राजासे कहा-'आप बहुत समयसे सभी भक्तोकी सरीखी सेवा-चाकरी करते हैं, परन्तु उनमे कोई बडे होगे, कोई छोटे होगे । इसलिये सवको पहचानकर भक्ति करें। तव राजाने हाँ कहकर पूछा-'तब कैसे करना?' राजाकी अनुमति लेकर प्रधानने जो दो हजार भक्त थे उन सबको इकट्ठा करके कहलवाया-'आप सब दरवाजेके बाहर आइये, क्योकि राजाको जरूरत होनेसे आज भक्त-तेल निकालना है । आप सब बहुत दिनोसे राजाका मालमलीदा खाते हैं, तो आज राजाका इतना काम आपको करना ही चाहिये।' घानीमे डालकर तेल निकालने का सुना कि सभी भक्त तो भागने लगे, और पलायन कर गये। एक सच्चा भक्त था उसने विचार किया'राजाका नमक खाया है तो उसका नमकहराम क्यो हुआ जाये ?.राजाने परमार्थ समझकर अन्न दिया है, इसलिये राजा जैसे चाहे वैसे करने देना चाहिये।' ऐसा विचार कर घानीके पास जाकर कहा-"आपको भक्त-तेल निकालना हो तो निकालें ।" फिर प्रधानने राजासे कहा-"देखिये, आप सब भक्तोकी सेवा करते थे, परन्तु सच्चे-झूठेकी परीक्षा नही थी।" देखिये, इस तरह सच्चे जीव तो विरले ही होते है, और ऐसे विरल सच्चे सद्गुरुको भक्ति श्रेयस्कर है । सच्चे सद्गुरुको भक्ति मन, वचन और कायासे करे । एक बात समझमे न आये तब तक दूसरी बात सुननी किस कामकी ? एक बार सुना वह समझमे न आये तब तक दूसरी बार न सुनें । सुने हुएको न भूलें, जैसे एक वार खाया, उसके पचे बिना और न खाये । तप इत्यादि करना यह कोई महाभारत काम नहीं है, इसलिये तप करनेवाला अहकार न करे । तप यह छोटेसे छोटा भाग है । भूखा रहना और उपवास करना उसका नाम तप नही है । भीतरसे शुद्ध अंत करण हो तव तप कहा जाता है, और तब मोक्षगति होती है । बाह्य तप शरीरसे होता है । तपके छः प्रकार है(१) अतर्वृत्ति होना, (२) एक आसनसे कायाको विठाना, (३) कम आहार करना, -(४) नोरस आहार करना, और वृत्तियोको कम करना, (५) सलीनता, (६) आहारका त्याग ।। .. तिथिके लिये उपवास नही करना है, परन्तु आत्माके लिये उपवास करना है। बारह प्रकारका तप कहा है। उसमे आहार न करना, इस तपको जिह्वाइन्द्रियको वश करनेका उपाय समझकर कहा है। जिह्वाइन्द्रिय वश की तो यह सभी इन्द्रियोके वश होनेका निमित्त है। उपवास करें तो इसकी बात वाहर न करे, दूसरेकी निंदा न करें, क्रोध न करें। यदि ऐसे दोष कम हो तो बडा लाभ होता है। तप आदि आत्माके लिये करना है, लोगोको दिखानेके लिये नही करना है। कषाय कम हो उसे 'तप' कहा है। लौकिक दृष्टिको भूल जायें। लोग तो जिस 'कुलमे जन्म लेते है उस कुलके धर्मको मानते हैं और वहाँ जाते हैं। परन्तु वह तो नाममात्र धर्म कहा जाता है, परन्तु मुमुक्षु वैसा न करे। सब सामायिक करते हैं, और कहते हैं कि जो ज्ञानी स्वीकार करे वह सच है। समकित होगा या नही, उसे भी ज्ञानी स्वीकार करे तो सच्चा है। परन्तु ज्ञानी क्या स्वीकार करे ? अज्ञानी स्वीकार करे ऐसा तो आपका सामायिक, व्रत और समकित है । अर्थात् आपके सामायिक, व्रत और समकित वास्तविक नही है, मन, वचन और काया व्यवहारसमतामे स्थिर रहे यह समकित नहीं है | जैसे नीदमे स्थिर योग मालूम पडता है, फिर भी वह वस्तुत स्थिर नहीं है, और इसलिये वह समता भी नही है। मन, वचन,
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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