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________________ १७वें वर्षसे पहले ७० अधिकारी हो तो भी प्रजाहितको मत भूल, क्योकि जिसका ( राजाका ) तू नमक खाता है, वह भी प्रजाका प्रिय सेवक है। ७१ व्यावहारिक प्रयोजनमे भी उपयोगपूर्वक विवेकी रहनेकी सत्प्रतिज्ञा लेकर आजके दिनमें प्रवृत्ति कर। ७२ सायंकाल होनेके बाद विशेष शान्ति ले। ७३ आजके दिनमे इतनी वस्तुओको बाधा न आये तभी वास्तविक विचक्षणता मानी जाये - १ आरोग्य, २ महत्ता, ३ पवित्रता और ४ कर्तव्य । ७४ यदि आज तुझसे कोई महान कार्य होता हो, तो अपने सर्व सुखका त्याग भी कर दे। ७५ करज यह नीच रज (क+ रज) है, * करज यह यमके हाथसे उत्पन्न वस्तु है, (कर+ज) कर यह राक्षसी राजाका क्रूर कर उगाहनेवाला है । यह हो तो आज चुका दे, और नया करते हुए रुक जा। ७६ दैनिक कृत्यका हिसाब अब देख जा। ७७ सवेरे याद दिलायी है, फिर भी कुछ अयोग्य हुआ हो तो पश्चात्ताप कर और शिक्षा ले। ७८ कोई परोपकार, दान, लाभ अथवा दूसरेका हित करके आया हो तो आनन्द मान और निरभिमान रह। ७९ जाने-अनजाने भी यदि कुछ विपरीत हुआ हो तो अब ऐसा काम मत कर। ८० व्यवहारका नियम रख और अवकाशमे ससारकी निवृत्ति खोज । ८१ आज तूने जैसा उत्तम दिन भोगा है वैसा अपना जीवन भोगनेके लिये तू आनदित हो, तो ही आ० ८२ आज जिस पलमे तू मेरी कथाका मनन करता है, उसीको अपनी आयु समझकर सद्वृत्तिमे लग जा। ८३ सत्पुरुष विदुरके कहे अनुसार आज ऐसा कृत्य कर कि रातमे सुखसे सोया जा सके । ८४. आजका दिन सुनहरा है, पवित्र है, कृतकृत्य होनेरूप है, ऐसा सत्पुरुषोने कहा है, इसलिये मान्य कर। ८५ जैसे हो सके वैसे आजके दिनमे और स्वपत्नीमे भी विषयासक्त कम रहना। ८६ आत्मिक और शारीरिक शक्तिकी दिव्यताका वह मूल है, यह ज्ञानियोका अनुभवसिद्ध वचन है। ८७ तम्बाकू सूंघने जैसा छोटा व्यसन भी हो तो आज उसे छोड दे ।-( • ) नवीन व्यसन करनेसे रुक जा। ८८ देश, काल, मित्र इन सबका विचार सभी मनुष्योको इस प्रभातमे यथाशक्ति करना उचित है। ८९ आज कितने सत्पुरुषोका समागम हुआ, आज वास्तविक आनन्दस्वरूप क्या हुआ ? यह चिन्तन विरले पुरुष करते है। ९० आज तू चाहे जैसे भयकर किंतु उत्तम कृत्यके लिये तत्पर हो तो हिम्मत मत हार । ९१ शुद्ध, सच्चिदानद, करुणामय परमेश्वरकी भक्ति आजके तेरे सत्कृत्यका जीवन है। ९२ तेरा, तेरे कुटुम्बका, मित्रका, पुत्रका, पत्नीका, मातापिताका, गुरुका, विद्वानका, सत्पुरुषका यथाशक्ति हित, सन्मान, विनय और लाभका कर्तव्य हुआ हो ता वह आजके दिनको सुगव है । ___९३ जिसके घर यह दिन क्लेशरहित, स्वच्छतासे, शुचितासे, एकतासे, सतोषसे, सौम्यतासे, स्नेहसे, सभ्यतासे और सुखसे बीतेगा उसके घरमे पवित्रताका वास है। * करज ( कर+ज)
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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