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________________ श्रीमद् राजचन्द्र ४३ कदाचित् प्रथम प्रवेशमे अनुकूलता न हो तो भी रोज जाते हुए दिनके स्वरूपका विचार करके आज कभी भी उस पवित्र वस्तुका मनन कर । ४४ आहार, विहार और निहार सबधी अपनी प्रक्रियाकी जाँच करके आज के दिनमे प्रवेश कर। ४५ यदि तू कारीगर हो तो आलस्य और शक्तिके दुरुपयोगका विचार करके आजके दिनमे प्रवेश कर। ४६ तू चाहे जो धधा करता हो, परतु आजीविकाके लिये अन्यायसपन्न द्रव्यका उपार्जन मत कर। ४७ यह स्मृति ग्रहण करनेके बाद शौचक्रियायुक्त होकर भगवद्भक्तिमे लीन होकर क्षमा मांग। ४८ यदि तू ससार प्रयोजनमे अपने हितके लिये अमुक समुदायका अहित कर डालता हो तो रुक जा। ४९ अत्याचारी, कामी और अनाडीको उत्तेजन देता हो तो रुक जा। ५० कमसे कम आधा प्रहर भी धर्मकर्तव्य और विद्यासपादनमे लगा। ५१ जिंदगी छोटी है और जजाल लम्बा है, इसलिये जजाल कम कर, तो सुखरूपसे जिंदगी लबी लगेगी। ५२ स्त्री, पुत्र, कुटुम्ब, लक्ष्मी इत्यादि सभी सुख तेरे घरमे हो तो भी इन सुखोमे गौणतासे दुःख रहा हुआ है, ऐसा मानकर आजके दिनमे प्रवेश कर । ५३ पवित्रताका मूल सदाचार है। ५४ चचल हो जाते हुए मनको सँभालनेके लिये, ५५ शात, मधुर, कोमल, सत्य और पवित्र वचन बोलनेकी सामान्य प्रतिज्ञा लेकर आजके दिनमे प्रवेश कर। ५६ काया मलमूत्रका पिण्ड है, इसके लिये 'मैं यह क्या अयोग्य कार्य करके आनद मानता हूँ,' ऐसा आज विचार कर। ५७ तेरे द्वारा आज किसीकी आजीविका नष्ट होनेवाली हो तो,५८ अब तूने आहारक्रियामे प्रवेश किया। मिताहारी अकबर सर्वोत्तम बादशाह माना गया है। ५९ यदि आज दिनमे सोनेका तेरा मन हो, तो उस समय ईश्वरभक्ति-परायण हो जा, अथवा सत्शास्त्रका लाभ उठा ले। ६० मैं समझता हूँ कि ऐसा होना दुष्कर है, तो भी अभ्यास सबका उपाय है। ६१ चला आता हुआ वैर आज निर्मूल किया जाये तो उत्तम, नही तो उसकी सावधानी रख । ६२. इस तरह नया वैर मत बढा, क्योकि वैर करके कितने समयका सुख भोगना है यह विचार तत्त्वज्ञानी करते हैं। ६३. आज महारभी एव हिंसायुक्त व्यापारमे लगना पडता हो तो रुक जा। ६४ बहुत लक्ष्मी मिलने पर भी आज अन्यायसे किसीकी जान जाती हो तो रुक जा। ६५ समय अमूल्य है, इस बातका विचार करके आजके दिनके २,१६,००० विपलोका उपयोग कर। ६६ वास्तविक सुख मात्र विरागमे है, इसलिये आज जजालमोहनीसे अभ्यतरमोहनीको मत बढा । ६७ फुरसतका दिन हो तो आगे कही हुई स्वतत्रताके अनुसार चल | ६८ किसो प्रकारका निष्पाप विनोद किंवा अन्य कोई निष्पाप साधन आजके आनदके लिये खोज । ६९. सुयोजक कृत्य करनेमे प्रवृत्त होना हो तो विलम्ब करनेका आजका दिन नही है, क्योकि आज जैसा मगलदायक दिन दूसरा नही है।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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