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________________ १७वें वर्षसे पहले १८. यदि आज किसीको दुःख देनेमे तत्पर हो तो अपने दुखसुखकी घटनाओंकी सूची याद कर ले। १९. तू राजा हो या रक हो, चाहे जो हो, परंतु यह विचार करके सदाचारकी ओर आ कि इस कायाके पुद्गल थोडे समयके लिये मात्र साढे तीन हाथ भूमि मॉगनेवाले है। २० तू राजा हो तो फिक्र नही, परन्तु प्रमाद न कर, क्योकि नीचसे नीच, अधमसे अधम, व्यभिचारका, गर्भपातका, निवंशका, चाण्डालका, कसाईका और वेश्याका कण तू खाता है । तो फिर ? २१ प्रजाके दुख, अन्याय और करको जाँच करके आज कम कर | तू भी हे राजन् । कालके घर आया हुआ अतिथि है। २२ यदि तू वकील हो तो इससे आधे विचारका मनन कर जा। २३. यदि तू श्रीमत हो तो पैसेके उपयोगका विचार कर । कमानेका कारण आज खोजकर कह । २४ धान्यादिके व्यापारमे होनेवाली असख्य हिंसाका स्मरण करके आज न्यायसपन्न व्यापारमे अपने चित्तको लगा। २५. यदि तू कसाई हो तो अपने जीवके सुखका विचार करके आजके दिनमे प्रवेश कर। २६ यदि तू समझदार बालक हो तो विद्या और आज्ञाकी ओर दृष्टि कर । २७ यदि तू युवान हो तो उद्यम और ब्रह्मचर्यकी ओर दृष्टि कर। २८ यदि तू वृद्ध हो तो मृत्युकी ओर दृष्टि करके आजके दिनमे प्रवेश कर । २९ यदि तू स्त्री हो तो अपने पति सम्बन्धी धर्मकर्तव्यको याद कर,-दोष हुए हो उनकी क्षमा मॉग और कुटुम्बकी ओर दृष्टि कर । ३० यदि तू कवि हो तो असंभवित प्रशसाका स्मरण करके आजके दिनमे प्रवेश कर । ३१ यदि तू कृपण हो तो,- . ३२ यदि तू अमलमस्त हो तो नेपोलियन बोनापार्टका, दोनो स्थितियोसे स्मरण कर। ३३ यदि कल कोई कार्य अपूर्ण रह गया हो तो उसे पूर्ण करनेका सुविचार करके आजके दिनमे प्रवेश कर। ३४ यदि आज किसी कृत्यका आरभ करना चाहता हो तो समय, शक्ति और परिणामका विवेकपूर्वक विचार करके आजके दिनमे प्रवेश कर । ३५ कदम रखनेमे पाप है, देखनेमे जहर है, और सिर पर मौत सवार है, यह विचार करके आजके दिनमे प्रवेश कर। ३६ यदि आज तुझे अघोर कर्म करनेमे प्रवृत्त होना हो तो, राजपुत्र हो तो भी भिक्षाचर्या मान्य करके आजके दिनमे प्रवेश कर। ३७. यदि तू भाग्यशाली हो तो उसके आनदमे दूसरेको भी भाग्यशाली कर, परतु दुर्भाग्यशाली हो तो दूसरेका बुरा करनेसे रुककर आजके दिनमे प्रवेश कर । ३८ धर्माचार्य हो तो अपने अनाचारकी ओर कटाक्षदृष्टि करके आजके दिनमे प्रवेश कर । ३९. अनुचर हो तो प्रियसे प्रिय ऐसे शरीरको निभानेवाले अपने अधिराजकी नमकहलाली चाहकर आजके दिनमे प्रवेश कर । ४० दुराचारी हो तो अपने आरोग्य, भय, परतत्रता, स्थिति और सुखका विचार करके आजके दिनमे प्रवेश कर। ४१ दुःखी हो तो ( आजको ) आजीविका जितनी आशा रखकर आजके दिनमे प्रवेश कर । ४२. धर्मकर्मके लिये अवश्य समय निकालकर तू आजकी व्यवहारसिद्धिमे प्रवेश कर ।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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