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________________ ७७० ७७० ७७७ ७७० [ ५४ ] १८० मान और मताग्रह मार्गमें अवरोधक स्तभरूप ७७० । १८१ स्वाध्यायके भेद ওও ০ १८२ धर्मके मुख्य चार अग १८३-१८६ मिथ्यात्वके भेद और मिथ्यात्व गुणस्थानक १८७ मिश्रगुणस्थानक और मिथ्यात्वगुणस्थानक ७७० १८८ दूसरा गुणस्थानक १८९-१९१ श्वेताम्बर और दिगम्बर दृष्टिसे केवलज्ञान ७७० १९२ ओघ आस्थासे विचारसहित आस्था ७७० १९३-१९८ त्यागकी आवश्यकता, प्रकार, त्यागकी कसरत, अभ्यास किस तरह ? ७७१ १९९-२०० अनतानुवघी आदि कपाय, , उसके उदय और क्षयका क्रम तथा बघ ७७१ २०१ घनघाती और अघाती कर्मके क्षयसबघी ७७२ २०२ उन्माद-चारित्रमोहनीयका पर्याय ७७२ २०३ सज्ञाके विविध भेद ७७२ २०४ कर्म या प्रकृतिके प्रकार ७७२ २०५ भाव अथवा स्वभाव और विभाव ७७२ २०६-७ कालके अणुओका पृथक्त्व और । धर्मास्तिकाय आदिकी प्रदेशात्मकता ७७३ २०८-२०९ वस्तु और गुण-पर्याय ७७३ २१०-२११ पदार्थमात्रमें रहनेवाली त्रिपदी और काल , २१२ पदार्थवर्ती षट्चक्र . ७७३ २१३ पदार्थके गमनमें समश्रेणिका कारण ७७३ २१४-२१९ इन्द्रिय और अतीन्द्रिय ज्ञान ७७३ २२०-२२१ आत्माके अस्तित्वका भासनासम्यक्त्वका अग ७७४ २२२ धर्मसम्बन्धी (श्री रलकरडश्रावकाचार) ७७५ ८५९ श्री व्याख्यानसार-२ १ ज्ञान और वैराग्य, ज्ञानीके वचन, 'छपस्य' और 'शैलेशीकरण' का अर्थ, मोक्षमें अनुभव, ऊर्ध्वगमनस्वभावी आत्मा, भरत, सगर और नमिराजकी कथायें।। ७७६ २ जैन आत्माका स्वरूप, अनादि आत्म धर्म, कर्मप्रकृतिके उत्कर्प, अपकर्प और सक्रमण, परमाणु और चैतन्य द्रव्यकी शक्ति ७७६ ३ वेदक सम्यक्त्व, पाँच स्थावर वादर व सूक्ष्म, गुणस्थानकका स्पर्श, परिणामकी तीन वारायें, उदय, आयुकर्म, चक्षुके प्रकार ४ अष्ट पाहुड, आत्मधर्मका भावन, द्रव्य, और पर्याय, आत्मसिद्धि, छ, दर्शन, जीवपर्यायके भेद, विपयका नाश, जिन और जैन, आत्माका सनातन धर्म, ज्ञानोका आश्रय, वस्तुव्यवच्छेद और पुरुषार्थ ७७८ ५ चार पुरुषार्थ, मोक्षमार्ग, सम्यग्ज्ञान, , जीवके भेद ७८० ६ जातिस्मरणज्ञान, आत्माको नित्यता, अप्रमत्त गुणस्थानक, स्मृति, प्रथिके भेद, आयुकर्मसम्बन्धी (कर्मग्रन्थसे) ज्ञानकी कसौटी, परिणामकी धारा थर्मामीटर ७८१ ७ मोक्षमालामेंसे असमजसता आदि हेम- । __ चन्द्राचार्य ८ सरस्वती, ससारप्रपचके कारण ७८३ • ९ योगदृष्टिसम्बन्धी, सूत्रसिद्धात, जिनमुद्रा, ईश्वरत्व तीन प्रकारसे ७८३ १० 'भगवती आराधना', मोक्षमार्ग अगम्य तथा सरल, नितात विषम मार्ग परमशात होना, काम आदि छोडनेमें अप्रमादी सच्चे गुरुसे आत्मशाति सहजमें, मोक्ष पुरुषार्थके अधीन ७८४ ११ रासभवृत्ति, 'भगवती आराधना' मेंसे परिणाम, लेश्या तथा योग, बघ, आस्रव, सवर, दर्शन और ज्ञानमें भूल, भेदज्ञान ७८६ १२ ज्ञान-दर्शनका फल ७८८ १३ देवागमस्तोत्र, आप्तके लक्षण, करणा नुयोग या द्रव्यानुयोग, निराकुलता सुख, सकल्प दुख, चैतन्य स्पष्ट, मुक्ति, मोहनीय और वेदनीय, जिनकल्पीके गुण, ' 'चेतनाके प्रकार ७८८ ७८३ . ७७३
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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