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________________ [ ५७ ], ७ सर्व द्रव्यसे मुक्त स्वरूप का अनुभव, सम्यग्दर्शनी और । सम्यक्चारित्रीको उद्बोधन ८३४ ८ दुख और उसका बीज आदि, कर्मके ' पाँच कारण, उसके अभावका क्रम ८३५ ९ ध्यान और स्वाध्याय, कैसी दशाका सेवन करते केवलज्ञान उत्पन्न हो ८३५ १० सहजात्मस्वरूप लक्षी विचारश्रेणि ८३६ ११ अप्रमत्त होनेके लिये प्रतीति करने योग्य - भाव । ६८ गुणातिशयता क्या? केवलज्ञानमें आहार, निहार आदि क्रियायें किस तरह ? । ८२६ ६९ ज्ञानके भेद । ८२७ ७०,परमावधिके बाद केवलज्ञान, द्रव्योकी गुणातीतता, केवलज्ञानकी निर्विकल्पता ८२७ ___७१ अस्तित्व, बध, अमूर्तता, पुद्गल और , जीवका सयोग, धर्मादिकी क्षेत्रव्यापिता, द्रव्यस्वरूप, केवलज्ञान और अनतताअनादिताकी शकायें । ८२७ ७२ सर्वप्रकाशकता और सर्वव्यापकता, आत्मा सम्वन्धी विचारणीय विषय . .८२८ ७३-७४ मार्गप्रवर्तनसम्बन्धी विचारणा -८२८ ७५ ‘सोह'. आश्चर्यकारक गवेषणा, आत्म____ ध्यान सम्बन्धी ऊहापोह ८२९ ७६ आत्माका असख्यातप्रदेश-प्रमाणत्व . ८२९ ७७ अमूर्तत्व, अनतत्व, मूर्तामूर्तत्व और बघ । आदि ८२९ ७८ केवलज्ञान और ब्रह्म ८३० ७९ जिनके अभिमतसे आत्मा ८३० ८० मध्यम परिमाणका नित्यत्व, कर्मबंधका हेतु, द्रव्य और गुण, अभव्यत्व धर्मास्ति काय आदिका वस्तुत्व, सर्वज्ञता ८३० ८१ वेदातके आत्मादि सम्बन्धी निरूपण ८३० ८२-८३ जनमार्ग ८३१ ८४ मोहमयीसबधी उपाधिको अवधि ८५ कुछ स्वविचार ८६ देव, गुरु, धर्म ८३२ ८७ जिनसदृश ध्यानसे तन्मयात्मस्वरूप कब होऊँगा? ८३३ ८८ अपूर्वसयम प्रगट करनेके लिये ८३३ सस्मरणपोयो-२ १ सहज शुद्ध आत्मस्वरूप ८३३ २ सर्वज्ञपदका ध्यान करें ८३३ ३ सत्पुरुषोको नमस्कार ८३३ ४ जिनतत्त्वसक्षेप ८३३ ५ मुख्य आवरण, मुमुक्षुता आदि उत्पन्न कैसे हो? ८३४ ६ जीयफे बघनके मुख्य हेतु १२ तीन वैराग्यसे लेकर अचित्य सिद्धस्वरूप तकके विचार ८३६ १३ सयम, समाधान, पद्धति और वृत्ति ८३७ १४-१५ सत्य धर्मके उद्धारसम्बन्धी ८३८ १६ नयदृष्टि विचार ८३८ १७ मै असग शुद्ध चेतन हूँ'। अनुभवस्वरूप . ८३९ १८ चैतन्य जिनप्रतिमा हो,' - ८३९ १९ अतराय करनेवाले काम आदिको सम्बोधन । ८३९ २० सम्यग्दर्शन, जिनवीतराग आदिको भक्तिसे " नमस्कार ८३९ २१ उपासनीय समाधिमार्ग ८४० २२ बघ, कर्म, मोक्ष ८४० २३ मोक्ष और मोक्षमार्गरूप सम्यग्दर्शनसे १२वें गुणस्थानकपयंत दशाओके लक्षण ८४० सस्मरणपोयी-३ १ सर्वज्ञ, जिन, वीतराग, सर्वज्ञ है, जीवका ज्ञानसामर्थ्य सपूर्ण २ सर्वज्ञपद श्रवण-पठन-विचार करने योग्य और स्वानुभवसे सिद्ध करने योग्य ८४१ ३ देव, गुरु, धर्म ८४१ ४ प्रदेश, समय, परमाणु, द्रव्य, गुण, पर्याय; जड, चेतन ८४२ ५ मूल द्रव्य और पर्याय ८४२ ६ दुखका आत्यतिक अभाव मोक्ष सम्यरज्ञान-दर्शन-चारित्र और मोक्ष, सकर्म जीव, भावकर्म, तत्त्वार्थप्रतीति ८४२ ८३२ ८३२ ८३४
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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