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७८१ परम पुरुषदशावर्णन, सर्वथा असग उपयोगसे आत्मस्थिति करे, वीतरागदशा रखना ही सर्व ज्ञानका फल
७८२ संसारका मुख्य वीज, श्रीसोभागकी दशा, उनके
देहत्याग करते हुए
अद्भुत गुणका
७८६ आतमरामी निष्कामी, सोभागकी अतरदशा अनुप्रेक्षा योग्य
७८७ ज्ञानीका मार्गं स्पष्ट सिद्ध
७८८ परम सयमी पुरुषोंका भीष्मव्रत
७८९ सत्शास्त्रपरिचय कर्तव्य
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स्मरण
७८३ दुखक्षयका उपाय,' प्रत्यक्ष सत्पुरुषसे सर्व
साघन सिद्ध, आरंभपरिग्रहकी वृत्ति मद करें ६१७ ७८४ सच्चे ज्ञान और चारित्रसे कल्याण ७८५ ज्ञानीके वचन त्यागवैराग्यका निषेध नही
६१८
७९० दीर्घकालको अति अल्पकालमें लानेके
ध्यानमें, एकत्वभावनासे
आत्मशुद्धिकी
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हितकारी दृष्टि
७९९ श्रुतज्ञानका अवलबन
८०० आत्मदशा होनेके प्रबल अवलवन
८०१ क्षमापना
८०२ असद्वृत्तिके निरोध के लिये
८०३ क्षमापना
८०४ क्षमापना
८०५ क्षमापना
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७९३ व्रत आदि और सम्यग्दर्शनका बल सत्पुरुषकी वाणी
७९४ ऐसा वर्तन करें कि गुण उत्पन्न हो ७९५ किसका समागमादि कर्तव्य ? ७९६ 'मोहमुद्गर' और 'मणिरत्नमाला' पढें
७९७ श्रीडुगरकी दशा
७९८ 'मोक्षमार्गप्रकाश' का श्रवण,
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६१५
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उत्कृष्टता
६१९
७९१ सद्वर्तन आदि प्रमाद अकर्तव्य
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७९२ परमोत्कृष्ट सयमका स्वरूपविचार भी "
विकट
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श्रोताकी
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८०६ सत्समागमसे कैवल्यपर्यंत निर्विघ्नता ८०७ दिगम्बरत्व और श्वेताम्बरत्व, 'मोक्षमार्गप्रकाश' में जिनागमका निषेध अयोग्य
८०८ सयम प्रथम दशामें कालकूट विष और परिनाममें अमृत
८०९ निष्काम भक्तिमानका सत्सग या दर्शन यह
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३१ वाँ वर्ष
८१५ विहार योग्य क्षेत्र
८९६ सर्व दुखक्षयका उपाय, प्रमाद
८१७ सम्यग्दर्शनसे दु खकी आत्यंतिक निवृत्ति ८१८ ज्ञान आदि समझनेके लिये अवलबनभूत
क्षयोपशमादि भाव
पुण्यरूप
६२४
८१० लोकदृष्टि और ज्ञानीकी दृष्टि, प्रमादमें रति ६२४ ८११ सबके प्रति क्षमादृष्टि, सत्पुरुषका योग
शीतल छाया समान
८१२ निवृत्तिमान द्रव्य आदिके योगसे उत्तरोत्तर ऊँची भूमिका, जीवको भान कव आये ? ६२४ ८१३ ऊपरको भूमिकाओ में अनादि वासनाका सक्रमण, अतराय परिणाममें शुरवीरता और सद्विचार ८१४ योगदृष्टिसमुच्चय आदि योग-प्रथ, अष्टाग योग दो प्रकारसे
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८१९ मोक्षपट्टन सुलभ ही है, शौर्य
८२० सद्विचारवानके लिये हितकारी प्रश्न
८२१ आत्महितके लिये बलवान प्रतिबंध, 'आत्म
सिद्धि' ग्रथमें अमोहदृष्टि
'८२२ समागमके प्रति उदासीनता
८२३. अबघताके लिये अधिकार
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८२४ सत्त और समागमका सेवन ८२५ आत्मस्वभावकी निर्मलताके साधन
८२६ सत्त-परिचयमें अतराय
८२७ उत्तापका मूल हेतु क्या ?
८२८ अहमदाबादमें जानेको वृत्ति अयोग्य
८२९ मुमुक्षुता दृढ करें
८३० नियमित शास्त्रावलोकन कर्तव्य
८३१ दु षमकालमें भी परम शातिके मार्गकी
प्राप्ति सभव
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