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________________ ७२८ देहान्तसे पहले ही ममत्वनिवृत्ति कर्तव्य ७२९ लोकदृष्टिमे वडप्पनवाली वस्तुएँ प्रत्यक्ष ज़हर ७३० एक समय भी सर्वोत्कृष्ट चिन्तामणि ७३१ कर्मानुसार आजीविकादि, प्रयत्न, निमित्त, चिन्ता आत्मगुणरोधक ७३२ भावसयमकी सफलताके साधन ७३३ वैराग्य-उपशमकी वृद्धिके लिये विचारणीय ग्रन्थ ७३४ पत्रोकी अलग प्रति लिखें ७३५ निरपेक्ष अविषम उपयोग ७३६ ज्ञानी के ज्ञानके विचारसे महती निर्जरा ७३७ त्यागमार्ग अनुसरणीय ७३८ अपूर्व अवसर ( काव्य ) ७३९ निर्ग्रथके लिये अप्रतिवधता ७४० सदाचार तथा सयम इच्छुकको उपदेशसे अधिक लाभकारी " [ ४४ ] ७५३ 'ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम माहरो रे' मोर पथsो निहाळु रे' का विशेषार्थ ५७० ७५४ कालकी वलिहारी । शासनदेवीसे विनती ७५५ दुख किस तरह मिट सके ? दुख, उसके कारण आदि सम्बन्धी मुख्य अभिप्राय, सम्यग्ज्ञानदर्शनचारित्र, दुखक्षयका मार्ग, द्वादशाग, निर्ग्रथ सिद्धान्तकी उत्तमता ५७० ५७१ ५७१ ५७१ ५७६ ७४१ इस बार समागम विशेष लाभकारी ५७६ ५७७ ५७७ ७४२ संस्कृतका परिचय, परस्पर ज्ञानकथा ७४३ ससारी इन्द्रियरामी आत्मरामी निष्कामी ७४४ शास्त्रानुसार चारित्र की शुद्धसेवा प्रदान करे ५७७ ७४५ केवलज्ञान होनेमे श्रुतज्ञानका अवलवन ७४६ मोहनीयका स्वरूप वारवार विचारणीय ७४७ 'दीनता' के बीस दोहे मुखाग्र करने योग्य ५७८ ७४८ कर्मवधकी विचित्रता ५७८ ५७८ ५७८ ५७१ ५७१ ५७१ ५७२ ५७२ ५७२ ५७६ ७४९ मुमुक्षुके लिये स्मरणीय वचन - 'ज्ञानका फल विरति है ।' विचारकी सफलता ५७९ ७५० वडवाके समागमसवघी, अद्वेषभावनामें स्वधर्म ५७२ ७५१ 'आत्मसिद्धि' में तीन प्रकारके समकित सत्पुरुषके वचनोका आलवन ७५२ लेश्या आदिका अर्थ ५८० ५८० ५८१ ५८६ ५८६ ७५६ जैनमार्गविवेक ५९० ७५७ मोक्षसिद्धात ५९० ७५८ द्रव्यप्रकाश ५९२ ७५९ दुख क्यो नही मिटता ? प्राणी के भेद-प्रभेद ५९२ ७६० जीवलक्षण, ससारी जीव, सिद्धात्मा, भावकर्म, द्रव्यकर्म ५९३ ७६१ नव तत्त्व, रत्नत्रय, ध्यान ५९४ ७६२ मोक्ष और उसका उपाय - वीतराग सन्मार्ग ५९५ ७६३ आत्मस्वरूपका ध्यान, निर्जरा ७६४ वीतराग सन्मार्गकी उपासना कर्तव्य ७६५ मोक्षमार्गमें प्रयोजनभूत विषय ७६६ पचास्तिकाय प्रथम अध्याय द्वितीय अध्याय ७६७ कठोर क्रियाओंके उपदेशमें रहस्य दृष्टि, निथका परम धर्म, पाँच समिति ७६८ केन्द्रियको मैथुनादि सज्ञा, ज्ञान, अज्ञान और ज्ञानावरणीय ७६९ समकित और मोक्ष ७७० मिथ्यात्वज्ञान 'अज्ञान' और सम्यग्ज्ञान ७७४ बघ और शुभाशुभ कर्मयोग, पुद्गल विपाकी, वेदना ७७५ अप्रमत्त उपयोग होने का साधन, जीवका आगमन, शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन ७७६ कर्मवध पाँच कारण, प्रदेशवघका अर्थ ७७७ आप्तपुरुष समागम आदिमे पुण्यहेतु, विशुद्धि स्थानकका अभ्यास कर्तव्य ७७८ सत्समागम परम पुण्ययोग ७७९ स्वभावजागृतदशा, ५९५ ५९६ ५९६ ५९७ ६०२ 'ज्ञान' ६०७ ६०९ ७७१ समकित और ससारकाल, प्रतीतिरूप समकित ६०८ ७७२ कर्मबधानुसार औषधका असर, निरवद्य औषघादि ग्रहण आज्ञाका अनतिक्रम ७७३ वेदनीय और औषध, परिणामानुसार वष, हिंसा और असत्य आदिका पाप, अर्हतको प्रथम नमस्कार क्यो ? अनुभव - उत्साहदशा स्थितिदशा, मुक्त और मुक्तदशा ७८० इस देहकी विशेषता, इस देहसे करने योग्य कार्य, कल्याणका मुख्य निश्चय ६०६ ६०७ ६०७ ६१० टा ६११ ६१२ ६१२ ६१३ ६१३ ६१३ ६१५
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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