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________________ ४५३ ४५५ । ४५६ [ ३९] ५३६ मुमुक्षु जीवको दो प्रकारकी दशा- ५५७ जगत मिथ्या विचारदशा, स्थितप्रज्ञदशा ४४१ / ५५८ उदय प्रारब्धके बिना सब प्रकारोमें असगता ४५३ ५३७ विचारवानको भय और इच्छा, अज्ञान- ५५९ अधिक समागममें आनेकी उदासीनता ४५४ परिषह और दर्शनपरिषह, जीव दिशामूढ ५६० ज्ञानीपुरुषके दृढाश्रयसे सर्व साधन सुलम, रहना चाहता है, समझे तो मोक्ष सहज, मुमुक्षु कठिनसे कठिन आत्मसाधनकी प्रथम मान्यता ही ससार है । ___- इच्छा करे, ज्ञानीपुरुष भी पुरुषार्थको मुख्य ५३८ सत्पुरुषके सगका माहात्म्य, निदान वुद्धिसे रखे, व्यापारादिसे निवृत्तिको इच्छा ४५४ सम्यक्त्वका रोध ५६१ मुमुक्षुताको दुष्करता ५३९ दासानुदासरूपसे ज्ञानीकी अनन्य भक्ति, ५६२ ज्ञानीको भिन्नता ४५५ सर्वांश दशाके विना शिष्यमें दासानुदासता ४४३ ५६३ उदास भावना होनेके साधन ५४० विवाह जैसे कार्यमें चित्त अप्रवेशक, हमारे 1. ६४ उपरामताकी इच्छा ४५६ प्रति व्यावहारिक बुद्धि अयथार्थ, प्रवृत्तिकी '] ५६५ छूटनेका एक प्रकार ४५६ थकावटकी विश्राति, दूसरे व्यवहारको ५६६ ससारके मुख्य कारण रागद्वेप, भयकर प्रत ४५६ सुनते-पढते आकुलता ४४३ | ५६७ अतापार वधमोक्षका हेतु । ४५६ ५४१ ज्ञानीको समय-समयमें अनत सयमपरिणाम ४४५ / ५६८ अनादिकी भूल, 'दुःखनिवृत्तिका उपाय ५४२ ठाणागसूत्रकी एक चौभगी । ४४५ आत्मज्ञान, समाधि, असमाधि, धर्म, कर्म, ५४३ अन्यसवघी तादात्म्यकी निवृत्तिसे मुक्ति . ४४५ वेदान्तादिसे भिन्नता, देहकी अनित्यता, ५४४ निर्बल प्रारब्धोदयमें सभाल, हमारे वचनके द्रव्य अनन्त पर्यायवाला ४५७ प्रति गौण भाव ४४५ | ५६९ आत्मज्ञानसे मोक्ष, मुनि-अमुनि, मनुष्यता५४५ बढ़ता हुआ व्यवसाय का मूल्य, उपाधि-कार्यसे छूटनेकी आत्ति, ५४६ परमाणुके अनत पर्याय, सिद्धके भी अनन्त जीवन्मुक्तदशा, त्याग और ज्ञान ४५८ पर्याय __,४४६ | ५७० उपाधि और समाधि, अविचारसे मोह। ५४७ अप्रतिवध भावके प्रवाहमें, बड़े आस्रवरूप बुद्धि, विवेकज्ञान अथवा सम्यग्दर्शन, मोहसर्वसगमें उदासीनता ४४७. बुद्धिको दूर करनेके लिये अत्यन्त पुरुषार्थ ४५९ ५४८ उपार्जित प्रारब्ध भोगना पडे, मलिनवासना ४४७ ५७१ मुक्तसे ससारी त्रिकाल अनन्त गुने, उपाधि ५४९ दुषमकालमें कौन समझकर शात रहेंगा? और असगदशा देखते रहना | ५७२ तीव्रज्ञानदशा, उसमे मुक्ति, आश्रय भक्ति५५० अयोग्य याचना, निष्काम भक्ति कर्तव्य ४४९ मार्ग, ज्ञानीके आश्रयमे विरोध करनेवाले ५५१ समाधि व असमाधि, आर्तध्यान, पदार्थके दोष तथा उनकी निवृत्ति ४६० परिणाम और पर्याय, मोक्षमार्गमें कौन? ४५० | ५७३ ससारकी आस्था छोडनेसे आत्मस्वभावकी ५५२ सकाम भक्तिसे प्रतिवघ, सकाम वृत्ति दुषम प्राप्ति और निर्भयता कालके कारण ५७४ तृष्णासे जन्ममरण ४६१ ५५३ असगतासे आत्मभाव सिद्ध हो उस प्रकारसे ५७५ सद्गुरुका माहात्म्य और आश्रयका स्वरूप ४६१ प्रवृत्ति करना ५७६ कल्पितका माहात्म्य ? जगतकी प्रवृत्ति ५५४ अन्तर्घम श्रेयरूप, परमार्थके लिये वाह्य लेनेके लिये, अपनीप्रवृत्ति देनेके लिये ४६२ आडवरका निषेध ४५२ | ५७७ वेदातके पृथक्करणके लिये जिनागम विचार ५५५ प्रत्यक्ष कारागृह ४५३ करने योग्य ५५६ ब्रह्मरस, त्यागावसरसम्बन्धी समागममें ४५३ । ५७८ सट्टेको न अपनायें ४६२ ४६१ ४६२
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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