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________________ २० वाँ वर्ष ५६३ सृष्टिके प्रवेश होने तक पाप पुण्य है ऐसा मानूं । ५६४ यह सिद्धात तत्त्वधर्मका है, नास्तिकताका नही ऐसा मानूँ । ५६५. हृदयको शोकातुर नही करूँ । ५६६ वात्सल्यसे वैरीको भी वश करूँ । ५६७. तू जो करता है उसमे असभव नही मानूँ 1 ५६८. शंका न करूं, खण्डन न करूँ, मंडन करूँ । ५६९ राजा होनेपर भी प्रजाको तेरे मार्गपर लगाऊँ । ५७०. पापीका अपमान करूँ । ५७१. न्यायको चाहूँ और पालूँ । ५७२. गुणनिधिका मान करूँ । ५७३ तेरा मार्ग सर्व प्रकारसे मान्य रखूँ । ५७४ धर्मालय स्थापित करूँ । ५७५ विद्यालय स्थापित करूँ । ५७६ नगर स्वच्छ रखूँ । ५७७ अधिक कर नही लगाऊँ । ५७८ प्रजापर वात्सल्य रखूँ । ५७९ किसी व्यसनका सेवन नही करूँ । ५८० दो स्त्रियोंसे विवाह नही करूँ । ५८१ तत्त्वज्ञानके प्रायोजनिक अभावमे दूसरा विवाह करूं तो यह अपवाद । ५८२ दोनो ( ) पर समभाव रखूँ । ५८३ तत्त्वज्ञ सेवक रखूँ । ५८४. अज्ञान क्रियाको छोड़ दूँ । ५८५ ज्ञान क्रियाका सेवन करनेके लिये । ५८६ कपटको भी जानना । ५८७. असूयाका सेवन नही करूँ । ५८८ धर्मकी आज्ञाको सर्वश्रेष्ठ मानता हूँ । ५८९ सद्गति मूलक धर्मका ही सेवन करूँगा । ५९० सिद्धात मानूंगा, प्रणीत करूँगा । ५९१ धर्म महात्माओका सन्मान करूँगा । ५९२ ज्ञानके सिवाय सभो याचनाएँ छोड़ता हूँ । ५९३ भिक्षाचरी याचनाका सेवन करता हूँ । ५९४ चातुर्मासमे प्रवास नही करू । ५९५ जिसका तूने निषेध किया उसे नही खोजूं या उसका कारण नही पूछें । ५९६ देहघात नही करू । ५९७ व्यायामादिका सेवन करूंगा । ५९८ पौषधादिक व्रतका सेवन करता हूँ । ५९९ अपनाये हुए आश्रमका सेवन करता हूँ । ६०० अकरणीय क्रिया और ज्ञानकी साधना नही करूँ । १५३
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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