SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ श्रीमद् राजचन्द्र ६०१ पाप व्यवहार के नियम नही बनाऊँ । ६०२ द्युतरमण नही करूँ । ६०३ रातमे क्षौरकर्म नही कराऊँ । ६०४. पैरसे सिर तक खूब खीचकर नही ओढूँ । ६०५ अयोग्य जागृतिका सेवन नही करू" । ६०६ रसास्वादसे तनधर्मको मिथ्या नही करूँ । ६०७ शारीरिक धर्मका एकात आराधन नही करूँ । ६०८. अनेक देवोकी पूजा नही करू । ६०९ गुणस्तवनको सर्वोत्तम मानूं । ६१०. सद्गुणका अनुकरण करू । ६११. श्रृंगारी ज्ञाता प्रभु नही मानूँ । ६१२ सागर - प्रवास नही करूँ । ६१३ आश्रमके नियमोको जानूं । ६१४ क्षौरकर्म नियमित रखना । ६१५ ज्वरादिमे स्नान नही करना । ६१६ जलमे डुबकी नही लगाना । ६१७ कृष्णादि पाप लेश्याका त्याग करता हूँ । ६१८. सम्यक् समयमे अपध्यानका त्याग करता हूँ । ६१९. नामभक्तिका सेवन नही करूँगा । ६२० खड़े खड़े पानी नही पीऊ । ६२१ आहारके अंतमे पानी नही पीऊ । ६२२ चलते हुए पानी नही पीऊ । ६२३ रातमे छाने बिना पानी नही पीऊं । ६२४ मिथ्या भाषण नही करूँ । ६२५ सत्शब्दोका सन्मान करू । ६२६ अयोग्य आँखसे पुरुष नही देखूं । ६२७ अयोग्य वचन नही बोलूँ । ६२८ नगे सिर नही बैठूं । ६२९. वारवार अवयवोको नही देखूं । ६३० स्वरूपकी प्रशंसा नही करूँ । ६३१ कायापर गृद्धभावसे प्रसन्न नही होऊँ । ६३२. भारी भोजन नही करूँ । ६३३. तीव्र हृदय नही रखूँ । ६३४. मानार्थ कृत्य नही करूँ । ६३५. कीर्तिके लिये पुण्य नही करूँ । ६३६ कल्पित कथा - दृष्टातको सत्य नही कहूँ । ६३७ अज्ञात मार्गपर रातमे नही चलूँ । ६३८. शक्तिका दुरुपयोग नही करू ।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy