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________________ ५३ पुराण ती है कि जब कि मन्त्रों का संग्रह वेद के रूप में हो चुका था, ब पुरानी लोकाचार सम्बन्धी कथाएँ पुराण के रूप में संगृहीत की जाती । (ख) पुराण का उपचय - रोमहर्षण ने उस पुराणसंहिता को छः शाखाओं में विभक्त करके उन्हें अपने छः शिष्यों को पढ़ाया। उनमें ले सीन ने तीन पृथक् पृथक् संहिताएं बनाई, जो रचयिताओं के नाम से प्रसिद्ध हुई और दोमहर्षण की संहिता के साथ ये तीन संहिताएँ मूकसंहिता कहलाई । उनमें से प्रत्येक के चार चार पाद थे और वे विषय एक होने पर भी शब्दों में भिन्न थीं । वे शाखाएं आजकल उपलभ्य नहीं है । हाँ रोम के सिवा, उप रचयिताओं में से कुछ के नाम पुराणों में और महाभारत में प्रश्न कर्ताओं के अथवा वक्ताओं के रूप में अवश्य आते हैं । वे प्रकरण जिन में ऐसे नाम आते हैं, संभव है उन पुराने पुराणों के ध्वंसावशेष हों जो वायु और ब्रह्माण्ड पुराण में सम्मिलित हो चुके हैं। एक बात और है । केवल ये ही दो पुराण ऐसे हैं, जिन में उक्त चार चार पाद पाये आते हैं । उन चारों पादों के नाम क्रमशः प्रक्रिया, अनुषङ्ग, उपोदात और उपसंहार हैं। उक्त छः शिष्यों में से पाँच ब्राह्मण थे । अतः पुराण ब्राह्मणों के हाथ आ गया | परिणाम यह हुआ कि साम्प्रदायिक नये पुराणों की रचना होने लगी । यह भी स्मरण रखने की बात है कि पुराणों की उत्तरोत्तर वृद्धि नाना स्थानों में हुई। पुराण की इस उत्पत्ति और उत्तरोत्तर वृद्धि की सात स्वय पुराण से मिलती है । 1 (ग) पुराण का विषय श्राख्यानों, गाथाओं और कल्पवाक्ये को लेकर पुराण की सृष्टि हुई थी इस बात को मन में रखते हु हम आदिम पुराणों के विषय को सरलता से जान सकते हैं । -Ama
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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