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________________ (११) (क) पुराणों की उत्पति-पुराण शब्द अथर्ववेद और ब्राह्मणों में सृष्टि-मीमांसा के अर्थ में प्राता है। महाभारत में इसका प्रयोग प्राचीन उपाख्यानों के ज्ञान के अर्थ में हुधा है। असली पुराण की उत्पत्ति का पता वायु, ब्रह्माण्ड और विष्णु पुराण से लगता है। (भागवत भी कुछ पता देता है । किन्तु वह कुछ भिन्न है और अवरकालीन होने के कारण विश्वसनीय नहीं है। अतः ध्यान देने के योग्य मी नहीं है।) कहा जाता है कि व्यास ने-जिनका यह नाम इसलिए पड़ा कि उन्होंने वेद का विभाग करके उसे चार भागों में क्रमबद्ध किया था-वेद अपने चार शिष्यों के सुपुर्द किये थे। बाद में उन्होंने आख्यायिकाओं, कहानियों, गीतों और परम्पराप्राप्त जनश्रुतियों को लेकर एक पुराण की रचना की और इतिहास के साथ इसे अपने पाँचचे शिष्य रोमहर्षण (या लोमहर्षण) को पढ़ा दिया। उसके बाद उन्होंने महाभारत की रचना की। यहाँ हमारा इससे कोई प्रयोजन नहीं कि व्यास असबी पुराश के रचियता थे या नहीं । मुख्य बात तो यह है कि पुराने समय से विभिन्न प्रकृति की पर्याप्त परम्परा प्राप्त कथाएँ चलती श्रारही होंगी, जो स्वभावतः पुराण की रचना में काम में लाई गई। यह बात बिलकुल स्वाभाविक प्रतीत १ स्वयं महाभारत, पुराण को अपने से पूर्वतन अंगीकार करता है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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