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________________ १८ संस्कृत साहित्य का इतिहास केवल जैन शिलालेखों को छोड़कर, सारे के सारे शिलालेख संस्कृत में ही मिलते हैं । यह बात तो सभी मानेंगे कि शिक्षालेख प्रायः उली भाषा में लिखे जाते हैं, जिसे सर्वसाधारण पद और समझ सकते हैं । (१) उत्तरभारत के बौद्धों के ग्रंथ प्रायः संस्कृत में ही बले आ रहे है । इससे सूचित होता है कि बौद्ध लोग तक जीवित भाषा संस्कृत की उनके विरोध में सफल नहीं हो सके । (१०) नसांग विस्पष्ट शब्दों से कहता है कि ई० सातवीं शताब्दी में बौद्ध लोग धर्मशास्त्रीय मौखिक वाद-विवाद में संस्कृत का ही व्यवहार करते थे। जैनों ने प्राकृत को बिलकुल छोड़ तो नहीं दिया था, पर वे भी संस्कृत का व्यवहार करने लगे थे । (११) संस्कृत नाटकों में पात्रों की बोलचाल के योग्य नाना प्राकृतों का भी प्रयोग रहता है । नायक एवं उच्चपद के अधिकारी पात्र, जिनमें तपस्विनियाँ भी सम्मिलित है संस्कृत बोलती हैं, किन्तु स्त्रियाँ और निम्नस्थिति के पात्र प्राकृत ही बोलते है । इससे सिद्ध होता है कि जो संस्कृत नहीं बोलते थे, वे भी संस्कृत समझते अवश्य थे । इसके अतिरिक्त पर्याप्त प्रमाणों से यह संकेत मिलता है कि संस्कृत नाटक खेले भी जाते ये और इसका यही अर्थ है कि नाटक दर्शक संस्कृत के बार्तालाप को समते और उसके सौंदर्य का रसानुभव भी करते थे । (१२) साहित्य में ऐसे भी उल्लेख पाये जाते हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि रामायण और महाभारत जनता के सामने मूलमात्र पढ़कर सुनाये जाते थे। तब तो जनता वस्तुतः संस्कृत के श्लोकों का अर्थ समझ खेती होगी । इस प्रकार हम देखते है कि हिमालय और विन्ध्य के बीच फैले हुए सम्पूर्ण आर्यावर्त में संस्कृत बोलचाल की भाषा थी । इसका व्यवहार ब्राह्मणा' ही नहीं, अन्य लोग भी करते थे । पतअति ने एक कथा लिखी १. पतञ्जलि के 'शिष्ट' शब्द पर ध्यान दीजिए ।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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