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________________ क्या संस्कृत बोलचाल की भाषा थी ? १७ (२) यास्क से प्रारम्भ करके सभी पुराने व्याकरण श्रेय संस्कृत को "भाषा" नाम से पुकारते हैं (३) पाणिनि के ऐसे अनेक नियम है, जो केवल जीवित-भाषा के में ही सार्थक हो सकते है । (४) पतञ्जलि ( ई० पूर्व द्वितीय शताब्दी ) संस्कृत को लोक व्यवहृत कहता है और अपने शब्दों को कहना है कि ये लोक में प्रचलित है । (५) इस बात के प्रमाण विद्यमान है कि संस्कृत में बोलचाल की भाषा में पाई जाने वाली देशमूखक विभिन्नताएँ थीं । ग्राहक और पाणिनि 'प्राच्यों' और 'उदीच्यो' की विभिन्नता का उल्लेख" करते हैं । कात्यायन स्थानिक भेदों की ओर संकेत करता है और पतञ्जलि ऐसे विशेष- विशेष शब्द चुनकर दिखलाता है, जो केवल एक-एक जिले में ही बोले जाते है | (६) कहानियों में सुना जाता है कि भिक्षुओं ने बुद्ध के सामने विचार रक्खा था कि आप अपनी बोलचाल की भाषा संस्कृत को बना लें । इसमें भी यही परिणाम निकलता है कि संस्कृत बुद्ध के समय में बोलचाल की भाषा थी । (७) प्रसिद्ध बौद्धकवि अश्वघोष (ई द्वितीय शताब्दी) ने अपने सिद्धांतों का प्रचार करने के लिए अपने ग्रंथ संस्कृत में लिखे । इससे यह अनुमान करना सुगम है कि संस्कृत प्राकृत की अपेक्षा साधारण जनता को अपनी और अधिक खींचती थी तथा संस्कृत ने कुछ समय के लिए खोये हुए अपने पद को पुत्र प्राप्त कर लिया था । ( ८ ) ई० दूसरी शताब्दी के बाद में मिलने वाले शिलालेख क्रमश: संस्कृत में अधिक मिल रहे हैं और ई० छठी शताब्दी से लेकर १ 'भाषा' शब्द 'भाष' से, जिसका अर्थ बोलना चालना है, निकला है । २. उदाहरणार्थ, 'दूर से सम्बोधन करने में वाक्य का अंतिम स्वर प्लुत हो जाता है' ।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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