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________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास ___ भारत में तो यह ग्रन्थ और भी अधिक लोक प्रिय अक्षा पा रहा है। इसका उल्था मध्यकालीन तथा वर्तमान भारतीय भाषाओं में होकर उसका उल्था फिर संस्कृत में हुभा । इसे पद्य का रूप देकर फिर उसे गद्य का रूप दिया गया। इसका प्रसारण भी हुश्रा और आकुञ्चन भी। इतना ही नहीं, इसकी कुछ कहानियों ने सर्वसाधारण में সলি জুহানি ক্ষা ৎ মান্য সুৰ ক্লিম হ ছি ভুল। স্কুল मौखिक कहानियों के अाधुनिक संग्रह में हो गया। यह कहने में कोई अत्युक्ति नहीं होगी कि इसके समाज जगत का कोई अन्य अन्य लाक का प्रीतिभाजन नहीं हो सका। (३) पञ्चतन्त्र के संस्करण---दुर्भाग्य से मालिक पञ्चतन्त्र अलभ्य है। हाँ, इसक प्राप्य संस्करणों की सहायता से किसी सीमा तक उसका पुनर्निमाण हो सकमा अपम्भव नहीं है। इसके विविध संस्करणों के तुलनात्मक अध्ययन से यह विस्पष्ट है कि-- (क) अन सब संस्करणों की अल्पत्ति प्रादर्श भूत किसी एक ही पाहित्यिक ग्रन्थ से हुई है (अन्यथा गद्य और पद्य दोनों में उपलभ्यमान अनेक शालिक अभेद का कारण बताना असम्भव है)। (ख) इन संस्करणों में घुमी हुई त्रुटियाँ मौखिक अन्य तक नहीं पहुँचती हैं। मौलिक पञ्चतन्त्र के निर्माण में वक्ष्यमाण संस्करण सहायक हो सकते हैं--- (१) क-तन्त्राख्यायिका ॥ १ लोक-प्रिय कथाओं के ग्रंथों ने (जैसे, पञ्चविंशतिका, शकसप्तति और द्वात्रिशतिकाने) पञ्चतत्र का स्वतंत्रता से उपयोग किया है और पञ्चतत्र के अनुवाद ब्रजभाषा, हिंदी, पुरानी और आधुनिक गुजराती, पुरानी और आधुनिक मराठी, तामिल इत्यादि भाषाओं में पाये जाते हैं।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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