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________________ असली पम्वतन्त्र (६३) असली पञ्चतन्त्र (1) असली ग्रन्थ का नाम---असली ग्रन्थ का नाम अवश्य पञ्चतन्त्र ही होगा। दक्षिण की प्रतियों में, नेपाल को प्रतियों में, हितो. पदेश में और उन सम्पूर्ण संस्करणों में जिनमें कोई नाम दिया गया है, यही नाम श्राता है। उदाहरण के लिए हितोपदेस का कर्ता शुद्ध सन से कहता है: पवतन्त्रात् तथाऽन्यस्माद् मन्यानाकृष्य जियते' (भूमिका प ) पञ्चतन्त्र की भूमिका में लिखा है:এক যন্ত্রকে কার লবিয়া কান্নাকালী পূনল মুন। नास में आए हुए 'वन्' शब्द का अर्थ है किसी अन्य का एक স্কয়, স্ব স্ব হ{ গলা ব্যথা ই কী দুম্বা মঙ্গল होता है तन्त्रैः पञ्जभिरेतश्चकार सुमनोहरं शास्त्रम् । इस प्रकार के नाम और भी मिलते हैं। यथा, अष्टाध्यायी (प्रा6 अध्यायों की एक पुस्तक । पाणिनि के व्याकरण का नाम)। शायद 'तन्त्र' शाद का अभिप्राय उम 'प्रन्थ खडसे है जिसमें 'तन्द्र का अर्थात जनीति का और व्यवहारोपयोगी ज्ञान का निरूपण हो । प्रो. इर्ट ने 'तन्छी' का अर्थ हाव-पेच किया है; परन्तु इसे बुद्धि स्वीकार नहीं करती। (२) अन्य की जनप्रियता- इसकी जनप्रियता का प्रमाण इसी तब्ध में निहित है कि इसके दो सौ से अधिक संस्करण मिलते हैं, जो पञ्चाम से अधिक भाषाओं में हैऔर इन भाषाओं में तीन-चौथाई के लगभग भाषाएँ भारत से बाहर की है। ११०० ई० में इसका भाषान्तर हिब में हुआ और ११७० ई० से पूर्व यह यूनानी, स्पेनिश, लैटिन, जर्मन, पुरानी स्वोनिक जैक और इंग्लिश में भी अनूदित हो चुका था। आजकल इसका पाठन-पान जावा से लेकर प्राइसलएड तक होता है। १ पञ्चतन्त्र और दूसरे ग्रंथों से प्राशय लेकर यह ग्रंथ लिखा जाता है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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