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________________ औपदेशिक जन्तु कथा का उद्भव ( २ ) औपदेशिक जन्तु कथा का उद्भव वैदिक साहित्य में विशेष करके ऋग्वेद में, औपदेशिक जन्तुकथाओं का ढूँढना व्यर्थ है । जैसा ऊपर कहा जा चुका है पञ्चतन्त्र के स्वरूप के मुख्य तत्व पशु-पक्षियों की कथाए तथा नीति- शिक्षाएँ हैं । ऋग्वेद से (८,१०३) केवल एक ऐसा सूक्त है जिससे प्रतीत होता है कि यज्ञ में मन्त्रोचारण करने वाले ब्राह्मणों की तुलना वर्षा के प्रारम्भ में टर्राते हुए मेंडकों से की गई है। इसके बाद कुछ उल्लेख छान्दोग्य उपनिषद् में मिलते हैं। उदाहरण के लिए हम देखते हैं कि सत्यकाम का प्रथम शिक्षादायी एक बैल, उसके बाद एक राजहंस और फिर एक और पक्षी है। महाभारत में जन्तु-कथाएँ प्रारम्भिक अवस्था में देखने को मिलती हैं। हम एक पुण्यात्मा बिल्ली की कहानी पढ़ते है, जिसने चूहों के जी में अपना विश्वास जमा कर उन्हें खा लिया। विदुर ने धृतराष्ट्र को समझाते हुऐ करा था कि चाप पाण्डवों को परेशान न करें, उनकी परेशान करने से ऐसा न हो कि सोने का श्रएडा देने वाला पक्षी आपके हाथ से जाता रहे। एक ओर अवसर पर एक चालाक गीदड़ की कथा आई है जिसने अपने मित्र व्याघ्र, भेड़िये इत्यादि की सहायता से खाने के लिए खूब माल पाया; परन्तु अपनी धूर्तता से उन्हें इसका जरा सा भी भाग न दिया। कहानी से दुर्योधन को समझाया गया है कि उसे पाण्डयों के साथ किस तरह बरतना चाहिए । बौद्धधर्म के प्रादुर्भाव मे श्रोपदेशिक जन्तु कथा साहित्य की उन्नति में सहायता की । पुनर्जन्मवाद में यह बात मानी जाती है कि मनुष्य शरीर में वास करने वाली श्रात्मा पाप-पुण्य के अनुसार तिर्यगादि की योनी में जाती रहती है । पुनर्जन्म के इस सिद्धान्त पर भारतीय धर्मों में बड़ा बल दिया गया है | जैसा हम ऊपर देख चुके हैं कि बौद्धों और जैनों ने अपने अपने धर्म के मन्तव्यों का प्रचार करने के में के लिए पशु-पक्षियों की अभ्रान्त साधन बना लिया था। बौद्ध जातकों सन्तों के पूर्वजन्मों के चरित्र का वर्णन करने २३७ लिए कहानी को एक बोधिसत्व एवं दूसरे 4
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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