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________________ अध्याय १४ opment P औपदेशिक जन्तु कथा (Fable) (११) औपदेशिक जन्तु-कथा का स्वरूप भारतीय साहित्य-शास्त्री बृहत्कथा जैसे और पंचतन्त्र जैसे ग्रन्थों में पारस्परिक कोई भेद नहीं मानते हैं । परन्तु इन दोनों का तुलनात्मक अध्ययन दोनों का भेद विस्पष्ट कर देता है । बाह्याकार, प्रतिपाय विषय भोर अन्तरारमा एक दूसरे के समान नहीं हैं। बृहत्कथा का प्रयोजन पाठक का मनोरंजन करना और पंचतन्त्र का प्रयोजन धर्मनीलि और राजनीति की शिक्षा देना है। पूर्वोक्स को रचना सरल गद्य में या वर्णन-कृत् पद्य में या दोनों के संयोग में हुई है, परन्तु उत्तरोक्त में बीच हीच में औपदेशिक पद्यों से संयुक्त शोभाशाली गध देखा जाता है। उत्तवोक्त में कथाओं के शीर्षक तक पच-बहु दिए गए हैं । लोकप्रिय कथा-साहित्य में अन्धविश्वास, लोकप्रचलित दन्तस्यायें, प्रणय और वीर्य-कमों (Adventures) की कहानियां, स्वप्न और प्रतिस्वप्न इत्यादि हुश्रा करते हैं, परन्तु पंचतन्त्र में हम प्रायः पशु-पक्षियों की कहानियां पाते हैं। ये पशु-पक्षी मानवीय संवेदनाओं से युक्त प्रतीत होते हैं, तथा विद्वान् राजनीतिविद् एवं चतुर धर्मनीति व्याख्याता के रूप में प्रकट होते हैं। लोक-प्रिय कथा से इसका भेद दिखजाने के लिए पंचसम्न को औपदेशिक जन्तु-कथा-साहित्य में सम्मिलित किया जाता है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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