SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लोकप्रिय कथाग्रन्थ माम त्रिविक्रमभट्ट और सोमदेव के चम्पुत्रों में, गोवर्धन की समाती में और ८७५ ई. के कम्बोदिया के शिलालेख में भी भाता है। (ग) प्रतिपाद्याथे की रूप रेखा--किसी किसी का कहना है कि बृहत्कथा की कथावस्तु का प्राधार रामायण की कथा है। रामायण में शाम सीता और लक्ष्मण को साथ लेकर बन में गए। वहाँ सीता चुराई गई लक्ष्मण की सहायता से रामने सीता को पुनः प्राप्त किया और अन्त में घर लौट कर के अयोध्या के राजा बने । बृहत्कथा का नायक भरवाहनदत्त वेगवती और गोमुख को साथ लेकर घरसे निकलता है; वेगवती से विधुत होता है, अनेक पराक्रमयत कार्य करने के बाद गोमुख की सहायमा से (नायिका) मदनमब्जा को प्राप्त करके विद्याधरों के देश का राजा बनता है ! जैसे हावण के हाथ मे पड़ कर भी लीता का सतीत्व सुरक्षित रहा, वैसे ही मानस-वेग के वश में रह कर भी मदनमनुका का नारीधर्म अखण्डिन रहा। यह बात तो अलन्दिग्ध ही है कि गुणात्य रामायणीय, महाभारतीय और बौद्ध उपाख्यानों से परिचित था। भासमान समानता केवल रूप-रेखा में हैं, विवरण की दृष्टि से वृहत्कथा और रामायण में बड़ा अन्तर है। नरवाहनदत्त और गोमुख के पराक्रम प्रायः कवि के समय की लोक-प्रचलित और पथिकों से मुनिसुनाई कहानियों पर प्राश्रित हैं। ये कहानियां श्रमिकों, नाविकों वांशकों, और पथिकों को छडी प्रिय लगने वाली हैं। लेखक का उद्देश्य सर्वसाधारण के लिए पैशाची भाषा में एक सुगम साहित्यिक सन्दर्भ प्रस्तुत करना था, न कि समाज के उच्च श्रेणी के लोगों के लिए संस्कृत में किसी ऐतिहालिक अथवा श्रीपाख्यानिक नप की जीवनी या आचारस्कृति सम्पादित करना । गणास्य में मौलिकता की बहुजता थी । सत्र तो यह है कि उसका ग्रन्थ अपने ढंग का अनठा ग्रन्थ है। गणाच्य के पात्रों के चरित्र का अङ्कन बड़ा भव्य है। मड़ोंमे ही नहों, छोटे पात्रों में भी व्यक्तित्व की खूब झलक है । नरवाहनदत्त अपने पिता उदयन से अधिक गुणशानी है। उसके शरीर पर तीस सहज
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy