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________________ यूरोप पर संस्कृत-साहित्य का प्रभाव संस्कृति के प्रारम्भिक दिनों की अवस्था को जानने की इच्छा रखते हो, यदि हम सब से पुरानी भारोपीय संस्कृति को समझना चाहते हैं, तो हम भारत की शरण लेनी होगी, जहाँ एक भारोपीय जाति का सबसे पुराना सदिय सुरक्षित है। (२) यूरोप पर संस्कृत-साहित्य का प्रभाव अठारहवीं शताब्दी की अन्तिम दशाब्दियों में जब यूरोप-निवासी सस्कृत से परिचित हुए, तब उसने वहां एक नये युग का प्रारम्भ कर दिया क्योंकि इसने भारतीय और यूरोपीय दोनों जातियों के इतिहासपूर्व के सम्बन्धों पर प्राश्चर्यजनक नया प्रकाश डाला। इसने यूरोप में तुलनात्मक भाषाविज्ञान की नींव डाली, तुलनात्मक पौराणिक कथाविद्या में कई परिवर्तन करा दिए, पश्चिमीय विचारों को प्रभावित किया, और भारतीय पुरातत्व के अन्वेषण में स्थिर अभिरुचि उत्पन्न कर दी। (क) तुलनात्मक भापाविज्ञान संस्कृत का पता लगने से पहले हिब, अरबी तथा अन्य भिन्न-भिन्न भाषाओं के भाषी कहा करते थे कि उनकी अपनी भाषा असली भाषा है और शेष सब भाषाएँ उसीसे निकली हैं। यह देखा गया कि यूनानी और लैटिन भाषाएँ अरबी और हिब्रू से सम्बद्ध नहीं कही जा सकती और न यूनानी और लैटिन मौलिक भाषाएँ हैं। संस्कृत के इस परिचय ने छुपे हुए सस्थ को प्रकाशित कर दिया। कुछ विद्वानों ने यह परिणाम निकालने की शीघ्रता की कि संस्कृत मौलिक भाषा है और इससे संबन्ध रखने वाली अन्य भाषाएँ इससे निकली हैं। किन्तु धीरे-धीरे चे इस परिणाम पर पहुँचे कि संस्कृत इन भाषाओं की माता नहीं प्रत्युत बड़ी बहन है । तब से लेका तुलनात्मक भाषाविज्ञान ठोस विषय का निरूपण करने वाला विज्ञार बन गया। बाद में रास्क ने और रास्क के पीछे निम ने भालुम किया कि व्यूटानिक भाषाएँ भी इसी वर्ग से सम्बन्ध रखती हैं, जिसे आसार के लिए भारोपीय वर्ग कहते हैं। अम्ब्रियन, ऑस्कन,अश्वानियन, लिथू
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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