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________________ संस्कृत-साहित्य का इतिहास (८) विद्यमान संस्कृत साहित्य परिमाण में यूनान और रोम दोनों के मिलाकर एक किये हुए साहित्य के बराबर है। यदि हम इसमें वे ग्रंथ जिनके नाम समसामयिक या उत्तरवर्ती ग्रंथकारों के दिये हुए उद्धरणों से मालूम होते हैं तथा वे ग्रंथ जो सदा के लिए नष्ट हो चुके हैं, इसमें सम्मिलित कर लें, तो संस्कृत-साहित्य का परिमाण बहुत ही अधिक हो जायगा। (8) "मौलिकता और सौंदर्य इन दो गुणों की दृष्टि से संस्कृत-- साहित्य समस्त प्राचीन साहित्यों में केवल यूनान के साहित्य से दूसरे दरजे पर है । मानवीय प्रकृति के विकास के अध्ययन के स्रोत के रूप में तो यह यूनानी साहित्य से बढ़कर है"। (मैकडानल) (१०) आर्य सभ्यता की धारा अविछिन्न रूप से बहती रही है। हिन्दुओं की भक्ति-भरी प्रार्थनाएँ, गायत्री का अप, सोलह संस्कार जो एक हिन्दू के जीवन को माता के गर्भ में आने से लेकर मृत्यु पर्यन्त विशेष रूप देते हैं,अरणियों से यज्ञ की अग्नि निकालना तथा अन्य अनेक सामाजिक और धामिक प्रथाएँ आज भी बिलकुल वैसी है, जैसी हजारों वर्ष पहले थीं। शास्त्रीय वाद-विवादों में, पत्र-पत्रिकाओं में तथा निजी चिट्ठी-पत्रियों में विद्वान् पंडितों द्वारा संस्कृत का प्रयोग, मुद्रण-यन्त्र का आविष्कार हो चुकने पर भी हस्तलिखित पुस्तकों की मकल उतारना, वेदों का तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों का पराठस्थ करना ताकि यदि ग्रंथ नष्ट भी हो जाये तो फिर अक्षरश: उनका निर्माण किया जा सके-सब ऐसी बात है, जो भारतीय जीवन के साधारण रूप को स्पष्ट करती हैं। अतः संस्कृत-साहित्य का अध्ययन केवल भारतीयों की भूतकालीन सभ्यता के ज्ञान के लिए ही नहीं, बल्कि हिन्दुओं की प्राधुनिक सभ्यता को समझने के लिए भी आवश्यक है। (११) केवल इतना ही नहीं, यूरोपीय संस्कृति और विचारों के क्रमिक विकास को समझने के लिए भी संस्कृत साहित्य के अध्यन की श्रावश्यकता है। विटरनिट्ज वहता है-'दि हम अपनी ही
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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