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________________ गद्यकाव्य और चम्पू जोश, पैनी नजर तथा जिन्दादिली के मिले हुए रंग से बने हैं । प्रकृति के या वर्णन के कवि को हैसियत में दगडी कालिदास, भारवि या माथ की तुलना न करता बही, फिर भी इसकी रचना में वसन्त, सूर्यास्त, राजवाहन और श्रवम्वीसुन्दरी का मिलन, प्रमतिकृत अपरिचित राजकुमारी का वृत्तान्त, और कन्दुकावती का गेंद खेलना ऐसे सुन्दर ढंग से वर्णित हुए हैं कि इन्हें हम किसी बड़े कवि के नाम के अनुरूप उसकी उत्तम रचना के उदाहरणों के रूप में सम्मुख रख सकते हैं। १६६ भाषा पर दण्डी का पूर्ण अधिकार प्रशंसनीय है । सम्पूर्ण सातवें अच्छूवास में एक भी श्रोष्ठ्य वर्णं नहीं आने पाया, कारण, मन्त्रगुप्त की प्रेयसी ने उसके श्रोष्ट में काट लिया था, तब उसने मुँह पर हाथ रखकर श्रोष्ठ्य वर्णं का परिहार करते हुए अपनी कथा कही । वैदर्भी रीति का समर्थक होने के कारण दण्डी ने अपना लक्ष्य सुबोधता, भावों का यथार्थ प्रकाशन, पदों का माधुर्य, चन्चन - विन्यास की मनोरमता रक्खा है और इसलिए इसने श्रुतिकटु तथा विशालकाय शब्दों के प्रयोग से परहेज़ किया है। गद्य तक में इसने दुर्बोधदीर्घ समास वाले पदों का प्रयोग नहीं किया है । यह निपुण वैयाकरण था, और इसने राजकुमारों की अपनी कथा सुनाने में उनके मुँह से लिट् बकार का प्रयोग नहीं करवाया । हाँ, इसने लुङ का पर्याप्त प्रयोग किया है दण्डी में हँसा देने की भी शक्ति है। राजकुमारों के जंगलों में घूमते फिरते रहने का तथा श्रपना-प्रयोजन पूर्ण करने के उनके अद्भुत उपायों को किथाओं से कवि की पाठक का मनोविनोद करने वाली भारी योग्यता का परिचय मिलता है । रानी वसुन्धरा ने नगर के भाद्र खोगों को एक गुप्त अधिवेशन में सम्मिलित होने के लिए निमन्त्रित किया और उनसे वस्तुत: गुप्त रखने का वचन लेकर एक झूठी अफवाह फैला जाते जगति वाल्मीकी कविरित्यभिधाऽभवत् । कवी इति ततो व्यासे कपयस्त्वयि दण्डिनि ॥
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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