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________________ १६८ संस्कृत साहित्य का इतिहास समाज का चिन्न अलित है। कवि का असली सदेश्य मनोरंजना को सामग्री उपस्थित करना है न कि सामाजिक अवस्था का चित्र उतारना । अान्तरिक स्वरूप की दृष्टि से ये कथाएँ गुणाव्य की वृहत्कथा में पाई जाने वाली कुछ कथाओं से मिलती जुलती है। इनसे सिद्ध होता है कि जादू-टोना, मन्तर-जन्तर, अन्ध-विश्वास और चमत्कार ही उस समय के धार्मिक जीवन का एक अनद थे। इन कथाओं में हम पढ़ते हैं कि एक श्रादमी श्राकाश से गिरता है और उसे कोई राहगीर अपने हाथों में समान लेता है परन्तु चोट किलो के नहीं लगती है। मार्कण्डेय मुनि के शाप से सुरतमंजरी नाम की एक अप्सरा चाँदी की 'जीर होगई थी, उसने नायक राजवाहन को बाँध लिया, और वह फिर अपसरा की अपक्षरा होगई। जोया जुना खेचने में, चोरी करने में, सेंध लगाने में तथा ऐसे ही और दूसरे काम करने में सिद्धहस्त हैं। प्रेम-चित्रों में जरा जरा-सी बातों को दिखलाने का प्रयत्न किया गया है जो अाजकल के पाठक में अरुचि उत्पन्न कर देती हैं। ऐसी बातों का क्रम यहां तक बढ़ गया है कि इस ग्रन्थ को पाठ्य-पुस्तकों में रखने के लिए उन बातों में से कुछ-एक को प्रन्थ से निकाल देना पड़ेगा। शैली--परम्परानुसार प्रसिद्ध दण्डी के पदलालित्य का उल्लेख इम पहले कर चुके हैं और कह चुके हैं कि सुबन्धु और बाण जैसी कृत्रिमता इसमें नहीं है। चरित्र-चित्रण की विशेष योग्यता के लिए भी दण्डी प्रसिद्ध है। केवल राजकुमारों का ही नहीं, छोटे छोटे पात्रों का चरित्र भी बड़ी सकाई के साथ चित्रित किया गया है। उनमें से प्रत्येक की एक विशिष्ट ब्यक्ति भासिब होने लगी है और उनके चित्र-चित्रण दण्डी२ के भाम १देखिए खंड ७७। २ दण्डी यशस्वी कवि के रूप में प्रसिद्ध है। इसका काव्यादर्श सारे का सारा पद्य-बद्ध है और दशकुमारचरित भी श्रान्तरिक स्वरूप में काव्य हो है (देखिए वा रसात्सकं काव्यम्।) एडी के किसी पुराने प्रशंसक ने कहा है :
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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