SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास लीन भोजों का उल्लेख किया है। अतः हम उपयुक परम्परा को भी सत्य मान सकते हैं। (४) माघ अपने बहुत कुछ उपजीब्य भारवि और भहि से निस्सन्देह बाद में हुश्रा। यह भी निश्चित रूप से मालूम है कि माव को हर्ष कृत 'नागानन्द का परिचय था। किसी किसी ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि सुबन्धु ने मान के अन्ध से लाभ उठाया है। परन्तु यह प्रयत्न न तो बुद्धिमत्ता से पूर्ण है और न विश्वासोत्पादक। (३५) रत्नाकर कृत हरविजय (८५० ई० के लगभग) यह १० सर्गों का एक बिजुल-काश्च महाडान्य है। इसे ८१० ई के आस-पास रत्नाकर' ने लिखा था। इसमें अन्धक के ऊपर ग्राम की हुई शिव की विजय का वर्णन है। काव्य में श्रानुपातिक सम्बन्ध का अभाव है। यह सबंमिय भी नहीं है। कवि पर माघ का समधिक प्रभाव सुव्यक्त है। क्षेमेन्द्र कवि के वसन्ततिलका के निर्माण में कृती होने का समर्थन करता है। (३६) श्रीहर्षे (११५०-१२०० ई०) महाकाव्य की परम्पदा में अन्तिम महाकाव्य नैषधीयचरित या औषधीय है जिसे कन्नौज के महाराज जयचन्द्र के आश्रय में रहने वाले श्रीहर्ष ने २ १२वीं शताब्दी के उत्तराद्ध में लिखा था। इस काव्य में २२ सर्ग हैं और दमयन्ती के साथ नल के विवाह तक की कथा १ इसकी शैली राजानक और वागीश्वर की शैलियों से मिलती है। २ इस ने और भी कई ग्रन्थ लिखे हैं। इनमें में ( खण्डनखण्डखाब) अधिक प्रसिद्ध है जिसमें इसने वेदान्त की उपपत्तिमत्ता सिद्ध की है। ३ कहा जाता है कि असली ग्रन्थ मे ६० या १२० सर्ग थे और आशा की जाती है कि शेष सगों की हस्तलिखित प्रति भी शायद कभी मिल जाए (कृष्णाचार्यकृत संस्कृत साहित्य का इतिहास पृष्ठ ४५), किन्तु यह सन्दिग्ध ही प्रतीत होता है कि कवि ने २२ सगों से अधिक लिखा हो।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy