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________________ मान १४२ का सुप्रभदेव था जो नृप वर्मयात (वर्मनाख्य) का मंत्री था! घसंतगाद से ६८२ वि० (६२५ ई०) का एक शिक्षा-लेख मिला है जिसमें वर्मलात का माम आया है। इस लिखित प्रमाण के आधार पर हम माघ का काख सातवीं शताब्दी के सत्ता में कहीं रख सकते हैं। (२) श्लोक २, १२ में 'वृत्ति' और 'पास' शब्द आये हैं। मल्लिनाथ के मत से श्लेष द्वारा वृत्ति का अभिप्राय 'काशिका वृत्ति' (जिसका रचयिता जयादित्य, इसिंग के अनुसार, ६६१ ई० में मरा) और न्यास का अभिप्राय काशिकावृत्ति की टीका 'न्यास है जिसका रचयिता जिनेन्द्रबुद्धि है (जिसके सम्बन्ध में इसिग चुप है)। इस साचय के आधार पर माघ का समय पाठवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में कहीं निश्चित किया जा सकता था, किन्तु यह साक्ष्य कुछ अश्विक मूल्य नहीं रखता, विशेष करके जब कि हम जानते है कि वाण ने भी हर्षचरित में प्रसन्नवृत्तमो गृहीतवाक्या कृतयुगपदन्याला होक इव व्याकरऽपि इस वाक्य में वृति और न्यास पद का प्रयोग किया है। सम्भव है माघ ने इन अधिक पुराने वृत्ति और न्यास ग्रन्थों की ओर संकेत किया हो। (३) पुरानी पुरम्परा के अनुसार माघ का नाम महाराज मोज़ के साथ लिया जाता है। इस आधार पर कुछ विद्वान् माघ को १३वीं शताब्दी में हश्रा बतलाते हैं। दूसरे विद्वानो का कहना है कि यह परम्परा सस्य घटनाओं पर आश्रित इतिहास के लेख के समान मूल्यवान् नहीं मानी जा सकती, अत: बक्त विचार माह्य नहीं हो सकता। यह बात ध्यान देने योग्य है कि कर्नल टाड ने अपने राजस्थान में किसी जैन रचित इतिहास और व्याकरण दोनों के संयुक्त सूची-प्रन्ध के आधार पर मालवे में क्रमशः ५७५, ६६५२ और १०४२ ई० में शासन करने वाले १. प्रभाविक चरित' ग्रन्थ से मिलाकर देखिये । २.६६५ ई० के भोजदेव का समर्थन ७१४ ई० के मानसरोवर वाले शिला-लेख से भी होता है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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