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________________ १०० संस्कृत ग्राहित्य का इतिहास 4 पति पास हैं वे इस ऋतु को सर्वोत्तम ऋतु अनुभव करती है अन्त में वसन्त ऋतु भाती है जिसकी शोभा श्राम को मंजरी बहाती है जो युवतियों के हृदय को बाँधने के लिये काम नाय का काम करती है । सारे ग्रन्थ में ११३ पद्य और वः सर्ग हैं । ( प्रत्येक स में एकएक ऋतु का वर्णन है । ) भी खूब परिवर्तित हैं। इस प्रारम्भिक रचना से भी कालीदास की सूक्ष्म-ईचिका और पू प्रसादगुणशालिता का पता लगता है । "प्रकृति के प्रति कवि की गहरी सहानुभूति, सूचमईक्षिका और भारतीय प्राकृतिक दृश्यों को विशद रंगों में चित्रित करने की कुशलता को जितने सुन्दर रूप में कालिदास का यह ग्रन्थ सूचित करता है, उसने में कदाचित् उसका कोई भी दूसरा ग्रन्थ नहीं करता 1" कालिदास के दूसरे किसी भी ग्रन्थ में "वह पूर्ण प्रसाद गुरु नहीं है जिसे आधुनिक अभिरुचि कविता की एक बड़ी रमणीयता सम् t, at roarrafत्रयों को इसने बहुत आकृष्ट न भी किया हो ।" यह कालिदास के प्रौढ़ काल का गोति-काव्य * (५) मे 3 हम कह सकते हैं कि यह संस्कृत साहित्य में ग्रीक करुणगीत (Elegy) है । कुबेर अपने सेवक एक यक्ष को एक वर्ष के लिए निर्वासित कर देता है | अपनी पत्नी से वियुक्त होकर वह ( मध्य भारत में ) रामगिरि नामक पर्वत पर जाकर रहने लगता है । वह एक दिन किसी मेघ को उत्तर दिशा की ओर जाता हुआ देखता है तो उसके द्वारा अपनी पत्नी को सान्त्वना का सन्देश भेजता है । वह मेघ से कहता है कि जब तुम आम्रकूट पर्वत पर होकर वृष्टि द्वारा दावानल को बुझ हुए आगे बढ़ोगे, तो वहां तुम्हें विन्ध्य पर्वत के नीचे बहती हुई नर्मदा इतिहास (इंग्लिश ), (1) मैकडानलः - संस्कृत साहित्य का चतुर्थ संस्करण पृष्ठ ३३७ १२ ए. बी. कीथ, संस्कृत साहित्य का इतिहास ( इंग्लिश ), पृष्ठ ८४ । ३ कीथ ने अपने संस्कृत साहित्य के इतिहास में ( पृष्ठ पर ) कुबेर के स्थान पर भूल से शिव लिख दिया है ।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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