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________________ ऋतु सहार ६६ जाने दौड़ता है तो क्या देखता है कि इन्द्र का सारथि मातलि उसकी दुर्ग बना रहा है। तभी उसने मातलि से सुना कि इन्द्र को दस्यों के संहार के लिये उसकी सहायता चाहिये ( ६ ) स्वर्ग में देव्यों पर विजय प्राप्त कर चुकने के बाद मावति राजा को स्वर्ग की सैर कराता है | सैर करते करते राजा मारीच महर्षि के श्राश्रम में पहुँचता है, जहाँ वह देखता है कि बावक खेल खेल में एक शेर के को खींच रहा है। कुछ देर में राजा को मालूम हो जाता है कि वह वीर बालक उसका अपना बेटा है । शकुन्तला तपस्थिती के वेश में भाती है और महर्षि मारीच उन दोनों का पुनर्मिलन करा देते हैं और कुन्वजा से कहते हैं कि तेरे इतने दुःख उठाने में राजा का कोई अपराध नहीं है ( ७ म अक ) । (४) ऋतुसंहार - यह कालिदास का गीतिकाव्य है, जो उसने अपने कवि-जीवन के प्रारम्भिक काल में दिवा था । यह ग्रीष्म के ओखरवी वर्गान से प्रारम्भ होकर वसन्त के प्राय: निःसत्व वर्णन के साथ समाप्त होता है, जिसमें rer in gat वनकर कालिदास के द्वापरम आदि को प्राप्त कर लेता है। छहों ऋों की विशेषताओं का बहुत ही मणीय रीति में निरूपण किया गया है और प्रत्येक ऋतु में अनुरागियों के हृदयों में उठने वाली भाव-कारियों को कुशाग्र कूची से afare कर दिखाया गया है। मीन के भास्वर दिवस तरु प्राणियों के लिए महा-दाहक हैं, उन्हें तो इस ऋतु में शीतल रजनियों में ही शान्ति मिलती है, जब चन्द्रमा भी सुन्दर तरुण रमणियों से द्वेष करने लगता है और जब विरही जन विरहाग्नि में भुनते रहते हैं। वर्षा ऋतु में अहि-मौतियों का चुम्बन करती हुई सी बादलों की घनी घटा कती है और युवक-युवतियों के हृदयों में अनुराग भावों का उनक उत्पन्न कर देती है । शरद् का जावराय निराला ही है। इस ऋतु में वियोगिनी युवतियों की दशा उस प्रियङ्गवत्ता के समान हो जाती है जिसे के की चोट विल कर डालती है; किन्तु जिनके
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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