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________________ ५ विकूमावेशीय से एक नाटक में अभिनय करने के लिये उर्वशी शीघ्र स्वर्ग में बुना ली जाती है। राजा वह प्रेम सन्देश सँभाल कर रखने के लिए विदूषक को दे । है किन्तु किसी न किसी प्रकार वह महारानी के हाथों में जा पहुचता है । और महारानी कुरित हो जाती है। राजा महारानी को मनाने का सबा प्रयत्न करता है, किन्तु सब व्यर्थ । तीसरे अक के श्रादि में हमें बताया जाता है कि भारत ने उर्वशी को मस्यंकोंक में जाने का शाप दे दिया क्योंकि उसने बचमी का अभिभय यथायोग्य नहीं किया था और 'मैं पुरुषोत्तम (विष्णु) को प्यार करती हूं। यह कहने को बजाए उसने कहा था कि 'मैं पुरुरवा को प्यार करती हूं'। इन्द्र ने बीच में पढ़कर शाप में कुछ परिवर्तन करा दिया जिसके अनुसार उसे पुरुरवा से उत्सान होने वाले पुत्र का दर्शन करने के बाद स्वर्ग में श्राने जाने का अधिकार हो गया । तीसरे अंक में महारानी का कोप दूर होकर महाराज और महारानी का फिर मेल-मिलाप हो जाता है। महारानी महाराज को अपनी प्रेयसा से विवाह करने का अनुमति दे देता है। उर्वशी अदृश्य होकर दम्पति की बातें सुननी रहती है और जब महारानी वहां से चली जाती है तब वह महाराज से श्रा मिलती है। चौथे अंक के प्रारम्भ में महाराज पर आने वाली विपत्ति का संकेत है। उर्वशी कुपित होकर कुमार कुंज में आधुमती है जहाँ स्त्रियों का प्रवेश निषिद्ध था, फजत वह जता बन जाती है। राजा उसे ददता हूँढता पागल हो जाता है और व्यर्थ में बादल से, मोर से, काय स भौरे से, हायोमे, हरिण से और नदी में उसका पता पूछता हे। अन्त में उसे एक आकाशवाणी सुनाई देती है और वक्ष एक जादू का रस पाता है जिसके प्रभाव से वह ज्यों ही खता को स्पर्श करता है क्यों हो वह बता पूर्वशी बन जाती है। १. हम कह सकते हैं कि यह सारे का सारा अंक एक गीतिकाव्य है जिस में वक्ता अकेला राजा ही है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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