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________________ __ संस्कृत साहित्य का इतिहास अ.नाटक-कला की उस्कृष्टता ( कालिदास साधारण कक्षा में से भी एक आश्चर्यजनक सुन्दर कथानक घड़ लेता है।) अ-शैली, और एमाषा! निस्सन्देह कालिदास का यह प्रथम नाटक है। इसकी प्रस्तावना में वह इस दुविधा में है कि भास, लोमिल्ल और कविपुत्र जैसे कीतिमान् कवियों की कृतियों के विद्यमान होते हुए न जाने अमला उसके नाटक का अभिनय देखेगी या नहीं। इसमें पांच अंक हैं और विदिशा के महाराज अग्निमित्र या विदर्भ की राजकुमारो मालविका की सयो गान्त प्रेम-कथा वर्णित है। प्रसंग से इसमें कहा गया है कि पुष्यमित्र ने अपने आपको सम्राट घोषित करने के लिए अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा छोड़ा, घोडे के प्रधानरक्षक धसुमित्र (अग्निमित्र के पुत्र) ने सिन्धु के किनारे यवनों को परास्त किया और पुष्यमित्र' (महाराज के पिता) ने उक्त विजय का समाचार राजधानी में भेजा। (२) विक्रमोर्वशीय-~-यह नाटक शक कला से, जिसमें कवि ने भारक-ला में पूर्णमोदि का परिचय दिया है, पहले लिखा गया है। इसमें पाँच अंक है। इसका विषय महाराज पुरुरवा और उर्वशी अपना का परस्पर प्रेम है। प्रथम नंक में पाता है कि केशी नामक देश्य के वश में पड़ी हुई उधंशी को अद्वितीय वीर महाराज पुरुषा ने बचाया । तभी वे दोनों एक दूसरे के प्रेमपाश में बंध गए। दूसरे प्रक की कथा है कि पुरुरवा विदूषक से उर्वशीविषयक अपने अनुराग का ArA साथ वर्णन करते हैं, उसी समय पश्य रूप में उर्वशी अपनी एक सखो के यहां पाती है भीर भोजपत्र पर लिखा हुआ अपना प्रेम सन्देश फैक देती है । तब पुलवा और उशी में वार्तामा प्रारम्भ होता है । संयोग अन्तिम मौर्य नृप को राज्यच्युत करके यह १७८ ई० पू० में सिंहासनारूढ़ हुश्मा इसने शुङ्गवश की नींव डाली। '
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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