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________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास (१) शणक्य के कई नाम प्रसिद्ध थे। यह are अभिधानचिन्तामणि नामक कोष के नीचे अवतारित श्लोक से प्रमाशित होती है :| মামন : জুষ্কোসে । मिल: पशिस्वामी विष्णुगुप्तोऽङ्गलाच मा। অল্পীর ফীকা কা গল্পী রাঃ বিঃ খ। ঘ া होने से वह परणय और शायद कुटज गोत्रा के सम्बन्ध से कौटल्य कहलाया। यह कुटिल भीति का पक्षपाती था, अब कौटिल्य भी कहलाता है। अन्य नाम अक्षिक प्रसिद्ध नहीं हैं। (३) क्या यह ग्रन्थ एक ही व्यक्ति की कृति है ? इस्य अर्थशास्त्र के मूल में ही बहत्तर बार इति चाडक्य: ऐसे वचन पाए जाते हैं। इसी का अवलम्स लेकर प्रो. हिल (Halie brandt ) ने कई जाता है कि यह अन्य किसी एक व्यक्ति की कृति नहीं है, चाणक्य की कृति होने की तो और भी कम अाशा है। उस महाशय के मान से बद्ध एक ही प्रयान (School ) के कई लेखकों की रचना है: क्याधि निरुक्त और महाभाष्य में हम इति पार' अरों 'इति पसलि,' ऐवं बाप कहीं भी नहीं पाते हैं। प्रो० जकोबी (Jacob1) ने इस मत का घोर विरोध किया है। भारत के अनेक लेखको में अपने ग्रन्थों में अपने हा नाम का प्रयोग प्रथम (अन्य ) पुरुष में किया है। इसका कारण स्पष्ट है~~चे स्वाभिमान-दाध के मामी होना नहीं चाहते थे । नामक, कबीर, तुलसीदास तथा अन्य अनेक कवियों ने ऐसे ही किया है। यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त प्रमाण हैं कि इस प्रन्थ ने अपने प्रस्थान (Schoot} को जन्म दिया है, प्रधान ने अन्य को नहीं:--- (3) कामन्दक ने इस ग्रन्थ के रचियता का उलेख विम्पष्टतया एक व्यक्ति के रूप में च्यिा प्रार उसके अन्य में ऐसे किसी सम्प्रदाय या प्रस्थान (School) के उपलेख का प्रामास तक नहीं पाया जाता। (२) लेखक ने ग्रन्थ एक विशेष उस्म को लेकर लिखा है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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