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________________ ८२ संस्कृत साहित्य का इतिहास है । इस अर्थशास्त्र की बड़ी विशेषता यह है कि इसमें हमें सिद्धान्त और क्रिया का सुन्दर समन्वय देखने को मिलता है । इस कारण संस्कृत के इन ग्रन्थों का महत्व ग्रीक के अरस्तू तथा अफलातून के थों से भी अधिक है । (ख) रचियता - अ) सौभाग्य से कौटल्य के अर्थशास्त्र के रचयिता के विषय में स्वयं ग्रन्थ का श्राभ्यन्तरिक प्रमाण प्राप्त है। ग्रन्थ के अन्त के समीप यह श्लोक श्राया है येन शास्त्रं च नन्दराजगता च भूः । श्रमर्षे पोटतान्याशु तेन शास्त्रमिदं कृतम् ॥ आगे में कहा गया है: j स्वयमेव विष्णुगुप्तश्चकार सूत्रन्च भाग्यन्च ॥ अर्थात "शास्त्रों पर टीका लिखने वालों में कई प्रकार का व्याजात दोष देकर विष्णुगुप्त ने स्वयं [ यह ] शास्त्र और [ इस पर ] भाष्य लिखा है 9 ( था ) बाक्ष प्रमाण के सम्बन्ध में निम्न बिखित बातें ध्यान में रखने योग्य हैं. - ( 1 ) कामन्दक ने अपने नीतिशास्त्र का प्रयोजन strate अर्थशास्त्र का मंक्षेष करना बतलाया है और अपने ग्रन्थ के प्रारम्भ में विष्णुगुप्त को प्रणाम किया है (२) दशकुमारचरित के आठवे उच्छ्वास में दण्डी ने कहा है: इयमिदानीमाचार्य विष्णुगुप्तेन मौर्थे षड्भिः श्लोकसह : संक्षिप्त १. असली पाक के रूप में और भी उद्धरण दिये जा सकते हैं । उदाहरणार्थ (क) कौटिल्येन कृतं शास्त्रं विमुच्य ग्रंथविस्तरम् । १ । १ । ( श्रा) कौटिल्येन नरेन्द्रार्थे शासनस्य विधिः कृतः । २ । १० ॥ इससे प्रकट है कि कौटिल्य और विष्णुगुप्त एक ही व्यक्ति के बाचक हैं |
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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