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________________ प्रज्ञा का स्वरूप अलकार चिन्तामणि के टीकाकार डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार त्रैकालिकी बुद्धि को 'प्रज्ञा' के रूप मे अभिहित किया गया है ।' प्रज्ञाविशिष्ट व्यक्ति को अतीत अन्तर्गत, व्यवहित अव्यवहित दूरस्थ - निकटस्थ, स्थूल तथा सूक्ष्म सभी विषयों का ज्ञान रहता है पातञ्जलयोग दर्शन मे ऋतम्भरा प्रज्ञा का उल्लेख प्राप्त होता है ।2 भोजवृत्ति के अनुसार सत्य को धारण करने वाली बुद्धि को ही ऋतम्भरा के रूप मे स्वीकार किया गया है । रुद्रकोश मे नवनवोन्मेषशालिनी प्रज्ञा को ही 'प्रतिभा' के पयार्य के रूप मे स्वीकार किया गया है । डॉ० रेखा प्रसाद द्विवेदी ने काव्य घटनानुकूल शब्दार्थोपस्थिति को प्रसूत करने वाली बुद्धि को प्रतिभा कहा है । इनके अनुसार अर्थ का प्रतिभासन अर्थ से ही सम्भव है और भाव वस्तु सामयिक वस्तु तथा कल्पित विषयवस्तु का ज्ञान प्रतिभा से ही सम्भव है । इस दृष्टि से शक्ति तथा प्रतिभा मे ऐक्य की प्रगति है। उक्त उद्धरणों के विवेचन से विदित होता है कि प्रज्ञा, प्रतिभा एव शक्ति तीनों मे अत्यन्त सूक्ष्म अन्तर है प्रज्ञा मे "प्रज्ञा विशष्ट बुद्धि' त्रैकालिक विषय दर्शन की क्षमता रखती है । प्रतिभा मे नवनवोन्मेष भाववस्तु, सामयिक कालिकीबुद्धि प्रज्ञा । अचि० प्रथम परिच्छेद, पृ0 तीन की पाद टिप्पणी ऋतम्भरा तत्र प्रज्ञा । पातञ्जल योगदर्शन । 1/48 ऋत सत्य बिभर्ति कदाचिदपिन विपर्ययेणाच्छाद्यते सा ऋतम्भरा प्रज्ञा तस्मिन् भवतीत्यर्थ । तस्माच्च प्रज्ञालोकात् सर्व यथावत् पश्यन् योगी प्रकृष्ट योग प्राप्नोति । वही - पृ0 - 81 प्रज्ञा नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभोच्यते । बालबोधिनी पाद टिप्पणी । प०-12 कारण प्रतिभा काव्ये सा चार्थ- प्रतिभासनम् । प्रज्ञाकादम्बिनी- गर्भ विद्युदुद्योत - सोदरम् ।। तथा वृत्ति । डॉ० रेखा प्रसाद द्विवेदी, काव्यालकार कारिका-2
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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