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तीनों ही काव्य उत्पत्ति के प्रति कारण है वस्तुत पर्यायात्मक है । आचार्य मम्मट ने जिस मे की है वही वस्तुत व्युत्पत्ति है ।
अत ग्रन्थों के अध्ययन से सुसस्कृत व्युत्पत्ति, शब्द और अर्थ युक्त रचना के गुम्फन की क्षमता रूपी प्रज्ञा एव प्रतिक्षण नये नये विषयों को प्रसूत करने वाली शक्ति रूपी बुद्धि जिसे प्रतिभा के रूप मे स्वीकार किया गया है ये तीनों ही काव्य के प्रति कारण है किन्तु इतना अवश्य है कि इन्होंने भामह व दण्डी की भाँति प्रतिभा को व्युत्पत्ति व अभ्यास से सस्कारित होने की चर्चा की है 12
होता है । 4
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अजित सेन के अनुसार छन्दशास्त्र, अलकार शास्त्र, गणित, कामशास्त्र, व्याकरण शास्त्र, शिल्पशास्त्र, तर्कशास्त्र, न्यायशास्त्र एव अध्यात्मशास्त्रों मे गुरु परम्परा से प्राप्त उपदेश द्वारा अर्जित निपुणता को ही व्युत्पत्ति के रूप मे स्वीकार किया है । 3
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। व्युत्पत्ति, प्रज्ञा तथा निपुणता तत्त्व की चर्चा निपुणता के रूप
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व्युत्पत्ति का स्वरूप
अजितसेन कृत व्युत्पत्ति विषयक विवेचन पर मम्मट का प्रभाव परिलक्षित
लौकिक व्यवहारेषु निपुणता व्युत्पत्ति । व्युत्पत्यभ्याससस्कार्या शब्दार्थघटनाघटा । प्रज्ञा नवनवोल्लेखशालिनी प्रतिभास्यधी ।। छन्दोऽलड् कारशास्त्रेषु गणिते कामतन्त्रके । शब्दशास्त्रे कलाशास्त्रे तर्काध्यात्मादितन्त्रके ।। पारम्पर्योपदेशेन नैपुण्यपरशालिनी । प्रतिपत्तिर्विशेषेण व्युत्पत्तिरभिधीयते ।।
अ०चि० पाठभेद टिप्पणी, पृ0 - 3
(अचि० 1 / 98
वही - 1 / 10, 1/110 खड्गादि
लक्षण
शास्त्राणा
छन्दोव्याकरणाभिधानकोशकलाचतुवर्गगजतुरग
ग्रन्थाना 1 काव्याना च महाकविसम्बन्धिनाम् आदिग्रह णादितिहासादीना च विमर्शनाद्व्युत्पत्ति
(का०प्र० 1 / 3 वृत्ति