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________________ वस्तु को नये-नये रूप से निरूपित करने का सामर्थ्य निहित रहता है तथा शक्ति मे संस्कारवश कवित्वबीजरूप सस्कारविशेष का आधान रहता है । अजित सेन के अनुसार प्रतिदिन काव्यज्ञ गुरूओं के समीप मे रहकर काव्य रचना करने की साधना करना अभ्यास कहलाता है । कार्य विशेष मे रहना ही अभ्यास के अन्तर्गत आता है । काव्य रचना सम्बन्धी आचार्य मम्मट ने भी काव्य सरचना मे बार-बार होने वाली प्रवृत्ति को अभ्यास के रूप मे स्वीकार किया है । 2 इसके अतिरिक्त अजितसेन ने काव्य रचना मे जिज्ञासु व्यक्ति के लिए यह बताया है कि उसे नित्य ही मनुष्यों द्वारा देखे गए कार्य कलाप से छन्द का अभ्यास बिना किसी अर्थ विशेष के ही करना चाहिए । जैसे 1 2 अभ्यास का स्वरूप 3 अम्भोभि सभृत कुम्भ शोभते पश्य भी सखे । शुभ्र शुभ्रपटो भाति सितिमान प्रपश्य भो ।। 3 इसी सन्दर्भ मे इन्होंने च अव्यय की व्यवस्था, ' गुरूणामन्तिके नित्य काव्ये यो रचनापर । अभ्यासो भव्यते सोऽय तत्काम कश्चिदुच्यते ।। - - - अ०चि० -1 /120 पौन पुन्येन प्रवृत्ति ( अभ्यास I (का०प्र० 1 / 3 वृत्ति तथा बालबोधन पृष्ठ 13 चादयो न प्रयोक्तव्या विच्छेदात्परतो यथा । नमोजिनाय शास्त्राय कुकर्मपरिहारिणे ।। अ०चि० 1/13 यतिच्युति और श्लथ 31040 1/17
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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