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________________ उपमा उपमा अलकार का सर्वप्रथम उल्लेख भरतमनि के नाट्यशास्त्र में किया गया है उन्होंने रूपक, दीपक तथा यमक के साथ उपमा का भी उल्लेख किया है। जिनमे सर्वप्रथम निर.पण उपमा अलकार का ही है - उपमा रूपक चैव दीपक यमक तथा । अलकारास्तु विज्ञेयाश्चत्वारो नाटकाश्रया ।। ना०शा0 - 17/43 भरतमुनि के अनुसार जहाँ गुण और आकृति के आधार पर किञ्चित् साम्य होने पर भी सादृश्य की प्रतीति कराई जाए वहाँ उपमा अलकार होता है।' आचार्य भामह की परिभाषा मे किञ्चत् नवीनता है । इनके अनुसार जहाँ विरुद्ध भिन्न उपमान के साथ देश-काल एव क्रियादि के द्वारा साम्य स्थापित किया जाए वहाँ उपमा अलकार होता है । इन्होंने भामह के 'यत्किञ्चित्' पद के आशय को 'गुणलेशेन' पद के माध्यम से व्यक्त किया । आचार्य दण्डी भी भरत और भामह की भाँति कथञ्चित् सादृश्य मे उपमा अलकार को स्वीकार करते है । आचार्य उद्भट 'चेतोहारि' साधर्म्य मे उपमा को स्वीकार कर एक नया विचार व्यक्त किया है क्योंकि इनके पूर्ववर्ती भरत भामह, दण्डी आदि आचार्यों ने इसका उल्लेख नहीं किया । ------------------------------------- - ना०शा0 17/44 भा० काव्या0 - 2/30 यत्किञ्चित् काव्यबन्धेषु सादृश्येनोपमीयते । उपमा नाम विज्ञया गुणाकृति समाश्रया ।। विरूद्धनोपमानेन देशकाल क्रियादिभि ।' उपमेयस्य यत्साम्य गुणलेशेन सोपमा ।। यथाकथञ्चित् सादृश्यं यत्रोद्भूत प्रतीयते । उपमानाम सा तस्या प्रपञ्चोऽय प्रदर्श्यते ।। बच्चेतोहारि साधर्म्यमुपमानोपमेययो. ।। मिथो विभिन्नकालादि शब्दयोरूपमा तु तत् ।। - का0द02/14 - का०ल0सा0 स0 - 1/15
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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