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________________ से कार्य सिद्ध सम्पन्न हो वहाँ समुच्चय अलकार होता है । समुच्चय मे कार्य सिद्धि के लिए एक समर्थ साधक के रहते हुए भी साधनान्तर का कथन किया जाता है । व्याजस्तुति एव अपर्तुति में भेद - व्याजस्तुति मे असत्य कथन प्रतीयमान रूप मे रहता है और अपह्नुति मे वाच्य रूप । परवर्ती काल मे आचार्य विद्यानाथ ने भी अलकारों के वर्गीकरण के पश्चात् कतिपय अलकारों के पारस्परिक विलक्षणता के कारणों का निरूपण किया है । इनका यह निरूपण अजितसेन से पूर्णरूप से प्रभावित है । यहाँ तक कि अलकारों का अनुक्रम भी वही रखा गया है, जो अजितसेन की अलकार चिन्तामणि मे प्रतिपादित है । अर्यालकारों का समीक्षात्मक अध्ययन - प्रस्तुत अध्याय मे अलकार चिन्तामणि मे निरूपित अर्थालकारों की समीक्षा अलकारों के वर्गीकरण के क्रम से की जा रही है जिसमे प्रथम सादृश्यमूलक अलकारों का निरूपण किया जा रहा है इस वर्ग मे निम्नलिखित अलकार है साधर्म्य मूलक अलंकार. उपमा, अनन्वय, उपमेयोपमा, स्मरप, रूपक, परिणाम, सन्देह, भ्रान्तिमान, अपर्तुति, उल्लेख, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, सहोक्लि, विनोक्ति, समासोक्ति, वक्रोक्त, स्वभावोक्ति, व्याजोक्ति, मीलन, सामान्य, तद्गुण, अतद्गुण । ---------------------------------------------------- कार्यसिद्धौ काकतालीयत्वेन 'कारणानतरसभवे समाधि । सिद्धावहमहमिकया हेतूनां बहुनां व्याप्ती समुच्चय । व्याजस्तुव्यपह्नत्योरपलापस्य गम्यवाच्यत्वाभ्या श्लेषाणां भेद सुगम । प्रतापरूद्रीयम् - रत्नापण टीका पृ0 - 401-403
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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