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________________ किया गया है । तत्पश्चात् आचार्य दण्डी ने इसका निरूपण चित्रकाव्य के अन्तर्गत किया है । आचार्य रुद्रट, भोज अग्निपुराण एव साहित्य दर्पण मे भी प्रहेलिका का उल्लेख है । आचार्य भामह ने नाना धात्वर्थ से गम्भीर तथा दुर्बोध शब्दों से निष्पादित यमक को प्रहेलिका के रूप में मान्यता दी है । यह वस्तुत राम शर्मा नामक किस विद्वान का मत था जिसका वर्णन उन्होंने 'अच्युतोत्तर' नामक काव्य में किया थ । बहुत सभव है कि यह प्रसर भामह को अत्यन्त प्रिय रहा हो इसीलिए उन्होंने 'हेय यमक' के सन्दर्भ में इसका निरूपण किया है । वस्तुत भामह इसे काव्य मे दुर्बोध ही स्वीकार करते है काव्य में इसका प्रयोग वाछनीय नहीं है क्योंकि इससे विद्वत् जन ही लाभान्वित हो सकते हैं । आचार्य दण्डी के अनुसार आमोदगोष्ठी मे विचित्र वाग् - व्यवहारों से मनो विनोद मे लोगों से भरी भीड में गुप्त - भाषण मे तथा दूसरों को अर्थानभिज्ञ बनाकर उपहास पात्र बना देने मे प्रहेलिका को उपयुक्त बताया गया है । आचार्य रुद्रट और भोज भी दण्डी के विचारों से सहमत हैं 14 आचार्य अजितसेन के अनुसार जिस रचना विशेष मे बाह्य एव आभ्यन्तरिक दो प्रकार के अर्थ होने पर उसमे जिस किसी अर्थ को कहकर विवक्षित अर्थ को अत्यन्त गुप्त रखा जाय, उसको प्रहेलिका कहा है तथा शब्द और अर्थ रूप से इस्के दो भेदों का उल्लेख भी किया है । - - - - - - - - - - - -- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - एक काव्यालकार - भामह - 2/18 ख) दण्डी - काव्यादर्श - 3/97 गि रुद्रट - काव्यालकार - 5/24 घ) सरस्वतीकण्ठाभरण - 2/33-34 ड) साहित्य दर्पप - 10/13 काव्यालकार - 2/18-20 क्रीडागोष्ठीविनोदेपु तज्ज्ञराकीर्पमन्त्रणे । परव्यामोहने चापि सोपयोगा प्रहेलिका ।। एक प्रश्नोत्तरादि चान्यत्क्रीडामात्रोपयोगमिदम् । ख स0क0म0-2/134 - दण्डी अनुकृत । अ०चि0 - 2/125 काव्यादर्श - 3/97 रूद्रट-काव्यालकार-5/24
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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