SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भावना गीत ( २२ ) सेवा करने में सहना हो, तौ भी रहू प्रसन्न हृदय मे, सार्थक कष्ट सहन को ही मैं, अन्य निरर्थक कष्ट सहन को, समझू मैं केवल व्यायाम || भूख आदि शारीरिक क्लेश । आने दून खेढ का लेश || समझू बाह्य तपों का काम । [ ४३ ~~~ ( २३ ) सच्चा तप है शुद्ध हृदय से कृत पापों का पश्चात्ताप | सेवा विनय ज्ञान से होता. सत्य तपस्याओ का माप ॥ वनू तपस्वी ऐसा ही मैं, स्वार्थहीन छल छद्मविहीन । स्वार्थ वृत्तियाँ नष्ट करू मैं रहू सदा सेवा मे लीन ॥ ( २४ ) हो न स्वाद - लोलुपता मुझमे, जिह्वा को करलू स्वाधीन | सरस हो कि नीरस भोजन हो, रहू सदा समता में लीन ॥ जीवित और स्वस्थ रहना हो, हो मेरे भोजन का ध्येय । सकल इन्द्रियाँ हों वश मेरे, सकल दुर्व्यसन हो अज्ञेय || विश्वप्रेम (२५) दुखित जगत के ऑसू पोछ्रे, हो सदैव यह मेरी चाह । दुनिया का सुख हो सुख मेरा, दुनिया का दुख अश्रु-प्रवाह ॥ दुखित प्राणियों की सेवा मे, मरते मरते करूं न आह । कॉटों मे बिछ कर भी दूं मै, पथ-हीन जनता को राह ॥
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy