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________________ ४२ ] सत्य संगीत 14 संग्रह की न लालसाएँ हों, पाऊं वन करदू मैं दान । साथ न आना साथ न जाता, फिर क्यों सग्रह क्यों अभिमान ।। आत्मसंयम (१८) पागल बना न पावे मुझका, जीवन-गत्र दुष्टतम क्रोध । क्षमा भाव हो सब पर मेरा, कल कुपथ का मैं अवरोध ॥ बनू पाप का ही वैरी मै, पापी को समझू बीमार । जिस की जैसी बीमारी हो, उसका वैसा हो उपचार ॥ बल यश बुद्धि विभव सुन्दरता कुल आदिक का न रहे मान । विनय-मूर्त होने को समझ, गौरव की सच्ची पहिचान ॥ आन्न-प्रशसा करू न मढवा ईया से मै कल न हाय । कभी न यह चरितार्थ कहं मैं, 'अधजल गगरी छलकत जाय। (२०) हं दम्भ से दर मबदा. हो न तनिक भी मायाचार । टोगों को निर्मूल कर मै. माया-शून्य रहे आचार ॥ स्वाति लाभ के लालच मे में, नहीं कर झटा नप त्याग । अन्य टोंग या चकता में. थोडा भी न रहे अनुराग ॥ मन को निन्नति को. ममस गौच मे का मार । बनु बनाना सिर भी. कल न कृत अमृत चित्रार ॥ लिमाटीन बन्छ ग्यगयों को नमझं मोजन का मानान । गांव में अट लगाकर. कल नहीं पर का अपमान ॥
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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